Part 2
धमाके की वजह से हाथी भी मर जाती है क्योंकि कार उससे ही टीक कर खड़ी थी । हाथी का बच्चा यह पूरा दृश्य देख रहा था वह देखता है कि उसकी मां की मृत्यु हो चुकी है । उसकी मां की मृत्यु के बाद उसकी आंखों से आंसू निकलने लगता हैं, थोड़ी देर बाद आग की लपटों के कारण हाथी का बच्चा वहां से चला जाता है। उसकी आंखों में अब भी दुख भरा हुआ था क्योकी उसने अभी ही अपनी मां को खोया था।
वह घूमते हुए काव्या के पास पहुंच जाता है । वह वहां खड़ा होकर उसे देखते रहता है । हाथी देखता हैं कि काव्या दर्द से चिल्ला रही है फिर काव्या एक-एक करके अपने दोनों बच्चों को जन्म देती हैं जन्म देने के बाद वह उन बच्चों को अपनी बाहों में भरकर देखती है , देखने के थोड़े देर बाद ही वह दर्द के कारण बेहोश हो जाती है। उसकी दोनों बच्चे अब पत्तियों में नग्न पड़े थे और वे रोए जा रहे थे ।
उधर घरवाले चिंता में थे क्योंकि उन्होंने कहा था कि वे 2 घंटे में घर पहुंच जाएंगे लेकिन अब 3 घंटे से अधिक होने वाले थे । कबीर के पिता कबीर के मोबाइल में फोन करते हैं लेकिन उसका फोन नहीं लगता क्योंकि उसका फोन भी धमाके में जल चुका था ।
तब कबीर के पिता उनके दोनों बेटों को उन्हें रास्ते में देखने के लिए जाने को करते हैं। कि कही उनकी गाड़ी खराब तो नहीं हो गयी होगी । वे दोनो उनके पिताजी के कहने पर उन्हे अपनी कार में ढूंढने निकालते हैं । घर से 5 किलोमीटर दूर जाने पर उन्हें एक जलती हुई कार दिखती है । सड़क पर खड़े होकर वे उसे देखते हैं और सोचते हैं कि चलो उनका काम तो तमाम हो गया।
उधर काव्या को होश आ गया था वह अपने बच्चों को अपनी बाहों में भरकर उस कार की ओर बढ़ती है वहां जाने पर वह देखती है कि कबीर उल्टा अधजला पड़ा हुआ है वह अपने बच्चों को पत्तियों में रखकर कबीर को देखने जाती है वह देखती है कि उसकी मृत्यु हो चुकी है ।
वहां उसके मृत शरीर को पकड़ कर वह रोती है थोड़ी देर में आग की लपटों को देखते हुए कबीर के दोनों भाई वहां पहुंच जाते हैं वे काव्या को जिंदा देखकर आश्चर्य हो जाते हैं वे सोचते हैं कि यह कैसे बज गई । वह टूटी हुई रोए जा रही थी तभी रमेश एक बड़ा पत्थर लेकर उसके सर पर मारता है काव्या मुड़कर देखती है वह पाती है कि वह कबीर का भाई है। दुसरे तरफ से सुरेश उस पर बड़े डंडे से वार करता है, अब उसकी भी मृत्यु होने वाली थी और थोड़े समय बाद उसकी मृत्यु हो जाती है । वे काव्या की मौत को पूरी तरह घटना का रूप दे देते हैं वे जैसे ही वहां से निकल रहे थे ।
तभी वे बच्चो को देखते हैं वहां एक लड़का और लड़की बच्ची पत्तियों मे खुले नग्न अवस्था में पड़े हुए थे वे दोनों अचानक रोने लगते हैं । तब रमेश और सुरेश एक दूसरे से बात करते हैं वे कहते हैं ये जरूर काव्या और कबीर के ही बच्चे हैं । अब इनका क्या किया जाए, फिर वे उन्हें भी मारने का निर्णय लेते हैं ।
जैसे ही रमेश और सुरेश घर से बाहर उन्हे खोजने निकलते हैं वैसे ही वहां उनका परिवारिक वकील घर पहुंच जाता है वह वहां वसीयत को पूरा कराने के लिए आया था जिसमें कबीर के पिता के हस्ताक्षर चाहिए थे । वह वकील पूछता है कि मुखिया जी मैं आपको वसीयत को पढ़कर सुनाता हूं ,यह सही तो लिखा है ना ?
तो वे हां करते हैं और वकील पढ़कर सुनाता है वह बताता है इसमें उनकी जायदाद का 50% हिस्सा कबीर के नाम और 25 -25 प्रतिशत उनके दोनों भाइयों के नाम है। उसे पूरा सुनने के बाद पता चलता है कि यदि उनके किसी बेटे को अगर कुछ हो जाता है तो उसकी सारी संपत्ति उसके पत्नी के नाम चला जाएगा । अगर उसकी पत्नी को भी कुछ हो जाता है तो उसके बच्चों के नाम यदि बच्चों को भी कुछ हो जाता है तो सारी प्रॉपर्टी गांव के हित के लिए पंचायत को चली जाएगी ।
यह सुनने के बाद कामिनी के पैरों तले जमीन खसक जाती है वह घबराई हुई, तुरंत अपने कमरे में जाकर उसके पति को फोन करती है और सारी बात उसे बताती है लेकिन जब तक वह बताती है तब तक वे एक बच्चे का काम तमाम कर चुके थे जो कि एक लड़का था ।
फिर वे उस बच्ची को गोद में उठाते हैं और घर में फोन करते हैं। वे बताते हैं कि काव्या और कबीर का एक्सीडेंट हो गया है और उनकी मृत्यु हो गई है । वे पुलिस को भी फोन करते हैं ।
थोड़ी देर बाद घर के सभी लोग वहां पहुंच जाते हैं और पुलिस भी वहां आ जाती है । पुलिस जगह की जांच करती है । कबीर के भाई उसके दादा को बताते हैं कि काव्या के दोनों जुड़वा बच्चे पैदा हो चुके थे लेकिन उनके एक बच्चे की मृत्यु भी हो चुकी है (उन्होंने उसके कत्ल को भी घटना का रूप दे दिया था और बच्चे का मुंह दबाकर उसे मार दिया था )
वे बताते हैं कि यह बच्ची सही सलामत है कबीर के पिता उस बच्ची को गोद में लेकर रोते हैं , फिर वे कहते हैं कि मेरे पास कबीर और काव्या की यही आखरी निशानी बची है फिर कबीर और काव्या से रोते हुए वादा करते हैं कि वे इस बच्चे का बहुत अच्छे से ध्यान रखेंगे उसे इसे दुनिया की हर खुशी देंगे।
यह सारी घटना पेड़ के पीछे खड़ा हाथी का बच्चा देख रहा था उसने यह भी देखा था कि कैसे उन दोनों ने काव्या और उसके बच्चे को मार दिया था वह यह भी समझ गया था कि यह घटना अनजाने में नहीं बल्कि जान बूझकर कराया गया है और उसकी मां के मौत के जिम्मेदार भी वहीं लोग है।
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पुलिस वाले उन तीनों के शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भेजते हैं और गाड़ी की आग बुझाते हैं। थोड़ी देर बाद वे सभी घर वालों को घर जाने के लिए कहते हैं और एक घरवाले को उनके मृत शरीर के साथ पोस्टमार्टम के लिए चलने को कहते हैं ताकि वह शरीर को लेकर वापस घर आ सके।
जब वे सब गांव में पहुंचते हैं तब तक गांव में यह बात फैल चुकी थी कि कबीर और काव्या( मुखिया जी की छोटे बेटे और बहू ) की मौत हो चुकी है । उनके घर के सामने गांव वालों की भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी , घर पहुंचने पर सुरेश उनके नौकर को एक लिस्ट देकर सगे संबंधियों को फोन कर सूचना देने को कहता है ।
थोड़ी देर बाद सब मेहमान एक-एक करके शोक में शामिल होने आते हैं, वहां महिलाएं जोर-जोर से विलाप करती रहती हैं । गांव वालों को घर में जाने पे पता चलता है कि काव्या के दोनो बच्चो का जन्म हो चुका था और उसमें से एक बच्चा मार भी गया है।
शोक मे शामिल होने बहुत लोग आते हैं कुछ घंटों बाद रमेश उनके शव को लेकर घर आता है । उनके शरीर को थोड़ी देर घर में रखते हैं और शोक मनाते हैं फिर दाह संस्कार के लिए शमशान ले जाते है। रोते हुए मुखिया जी उनका दाह संस्कार करते हैं मुखिया जी अपने लाडले बेटे की मृत्यु से पूरी तरह टूट गए थे उनकी आंखों में दुख साफ झलक रहा था और उनके आंसू रुक नही रहे थे।
दाह संस्कार में वे रोते हुए वे बोलते हैं कि तुम घर वापस क्यो आ रहे थे अगर तुम नहीं आते तो यह सब कुछ नहीं होता अच्छा होता तुम आते ही नहीं, कम से कम तुम जिंदा तो रहते मेरा तुमसे बात तो होता रहता फिर रमेश उनके करीब जाकर उन्हें सांत्वना देता है और चुप कराता है। फिर थोड़ी देर बाद वे घर वापस आ जाते हैं। वापस बुलाने के लिए वे खुद को दोषी समझने लगते हैं।
थोड़े दिनों तक बच्ची को उसके दादा रमेश और उसकी पत्नी को रखने को देते है वे जब रात को सोते हैं तो वह बार-बार उठ कर रोती थी जिस कारण वे रात भर सो नहीं पाते थे फिर वे बहाना बनाकर उसे सुरेश और उसकी पत्नी को दे देते है कुछ दिनो तक वे उसका ध्यान रखते हैं ।
थोड़े दिनों बाद उसके दादा उसका ध्यान स्वयं रखते हैं अब बच्ची हर समय उन्हीं के पास रहती थी वे उसका पूरा ध्यान रखते थे । वे उसे गोद में उठाते और घुमाते ,वे उसे डब्बे से दूध पिलाते और उसका हर काम करते। 6 महीने बाद बड़ी धूमधाम से प्रथम प्राशन का कार्यक्रम मनाया जाता है और उसका नामकरण संस्कार भी उसी दिन किया जाता है और उसे नाम दिया जाता है मीरा ,अब तक सभी उसे छोटी-छोटी कहकर पुकारते थे।
सभी घरवाले उससे प्यार करने का नाटक करते थे लेकिन उनके मन में उसके लिए तो क्रोध था क्योंकि अब वह कबीर के 50% जायदाद की अकेली मालकिन थी।
उसके दादा के साथ ही वह चलना सीखती है। वे उसे कंधे पर बिठाते उसे हर जगह घुमाने ले जाते जब मीरा 4 साल की होती है तो उसके दादा उसे बड़े और महंगे स्कूल में भेजते हैं वे ही मीरा को लेने और छोड़ने जाते और उसे पढ़ाते भी थे।
लेकिन जब वह 7 साल की होती है तब उसके दादा की तबीयत बिगड़ने लगती है और उनका देहांत हो जाता है जब तक वे जीवित थे तब तक घर वालों का व्यवहार मीरा के लिए ठीक था लेकिन उसके दादा के मृत्यु के बाद सब का व्यवहार मीरा के लिए बदल जाता है खास करके रमेश, सुरेश और कामिनी का।
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