माया, दीप्ती से उस बारे में कुछ नहीं कहती है जो भी अभी तक उसने देखा था। वो उस किताब को, दीप्ती से छिपाकर, अपने बैग में वापस रख देती है। उतने में दीप्ती का फोन बजने लगता है। दीप्ती फोन उठाती है और उस पर थोड़ी देर बात करके, उसे रख देती है। दीप्ती माया से फिर मुड़कर कहती है।
दीप्ती- ओए माया, तू चलेगी क्या?
माया को दीप्ती की बात कुछ खास समझ नहीं आती है।
माया- चलेगी? कहां ले जा रही है मुझे?
दीप्ती- अरे तू पहले हां या ना बोल, फिर बताऊंगी जब तू हां बोलेगी तो।
माया- यार ये क्या ही अजीब जबर्दस्ती है? अच्छा चल चलूंगी पर कहां?
दीप्ती- खज्जियार।
माया- हैं? ये कहां है?
दीप्ती- बस यहीं से २५ कि.मी. दूर और वहां आने वाले दिनों में भी काफी कम बर्फ गिरेगी।
माया- वहां क्या करने जा रहें हैं अब?
दीप्ती- ओफ्फो डंबो, घूमने जा रहें हैं। फाइन आर्ट्स वालों को पहली बार मौका मिला है ऐसे साथ घूमने का।
माया और दीप्ती, ये बात कर ही रहे होते हैं कि तभी दीप्ती का फोन फिर बजता है। दीप्ती जो भी उस फोन पर होता है उसको सब बताती है कि माया मान गई है। फोन काटने के बाद माया दीप्ती से पुंचती है कि कौन-कौन चल रहा है?
दीप्ती- अरे यार ज़्यादा लोग नही बस मैं, तू, उत्कर्ष, अनामिका, दक्ष, दर्शित, दित्या, दंश, नकुल, तरुण, तुषार, विशाल और श्रद्धा।
दीप्ती फिर एक लंबी गहरी सांस लेती है।
माया- सबका नाम तो तूने ले लिया। विक्रांत नहीं चल रहा क्या?
दीप्ती- अरे यार, उससे पूंछा था पर उसे उसकी शॉप में कुछ काम था। उसके अलावा भी कुछ फैमिली इश्यूज हैं तो उसने आने से मना कर दिया।
माया- ओह अच्छा। यार वो भी चलता साथ में तो ठीक रहता। अच्छा वैसे, ये दंश क्यों चल रहा है हमारे साथ में?
दीप्ती- घूमते टाइम दक्ष और दर्शित को लाइन में रखने के लिए।
माया- सही है। वैसे भी दोनों को वही कंट्रोल कर सकता है। निकलना कब है?
दीप्ती- कल सुबह।
माया ये सुनकर थोड़ी परेशान सी हो जाती है।
माया- अबे यार कल? मेरी तो पैकिंग भी नही हुई है अभी तो। यार तू पहले नही बता सकती थी इस ट्रिप के बारे में?
दीप्ती- कैसे बताती? तू सुबह से अभी मिली न मुझे।
माया- चल बातें बंद कर और पैकिंग कराने में मदद कर मेरी।
माया और दीप्ती, वसुधा और दुष्यंत की परमिशन से माया की ४ दिन की पैकिंग करते हैं। माया पैकिंग के बाद दीप्ती को बाय कहती है और सोने चली जाती है। दीप्ती भी अपने घर चली जाती है।
अगले दिन दीप्ती और माया तैयार होकर घर के बाहर मिलते हैं। वहां से दोनों बस स्टैंड पर जाते हैं। माया देखती है कि ऑलरेडी सब वहां पर पहुंच चुके थे। सिर्फ दित्या और उसके भाई ही वहां आने बचे थे। सब लोग उनके आने का कुछ देर इंतजार करते हैं। वो लोग करीब १० मिनट बाद आ जाते हैं। सब एक साथ बस में बैठ जाते हैं। क्योंकि दीप्ती को उत्कर्ष के साथ बैठना था, माया को पीछे वाली खाली सीट पर जाना पड़ा। माया उस सीट पर जाकर बैठ जाती है। उस सीट पर दंश पहले से बैठा था।
दंश उसी शांती से अपनी ग्रे आंखों से बाहर देख रहा था। माया उसके पास बैठ गई थी पर दंश को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे माया को देखकर कुछ फ़र्क ही नहीं पड़ा था। माया ये सब वहीं बैठे हुए नोटिस कर रही थी। उसे दंश से बात तो करनी थी पर उसके दिमाग में आ ही नहीं रहा था कुछ कि कैसे कन्वर्सेशन स्टार्ट करे उससे। माया कुछ सोच कर मन ही मन खुश हो जाती है।
माया- हेलो दंश! आपको थैंक यू कहना था उस दिन के लिए। मैं बोलना ही भूल गई थी।
दंश अभी भी वैसे ही एक दम सीरियस से मूड में ही बैठा था। उसने माया की उस बात पर कुछ रिएक्शन नहीं दिया। माया को ये देखकर दंश पर थोड़ा सा गुस्सा आ गया।
माया(मन में)- उस दिन तो बड़ा हीरो बन रहा था। आज देखो कितना रूड बिहेव कर रहा है। खड़ूस कहीं का।
माया ने मन में ये बात खत्म करी ही थी कि दंश खांसने लगता है। उधर आगे से दक्ष, दर्शित और दित्या भी पीछे मुड़कर, दंश को देख कर हंसने लगते है। माया ये देखकर सोचती है कि इन चारों को हुआ क्या है? दंश थोड़ा और सीरियस होकर वहां बैठ जाता है। माया वैसे तो दंश से गुस्सा थी पर बस में बैठे-बैठे पूरे टाइम वो तिरछी नज़रों से उसी को देखे जा रही थी। दंश की ग्रे आंखों को देखकर माया को लगता था कि उसने पहले भी वो आंखें कहीं देखी हुई थी। वो अपने आप से भी यही सवाल पूछ रही थी।
दंश से उसका स्ट्रेंज कनेक्शन माया को समझ नहीं आ रहा था। उसे लग रहा था कि उसे इन सबके बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। दूसरी तरफ दंश भी वही स्ट्रेंज बॉन्ड माया की ओर फील कर रहा था। ऐसा क्यों था उसे इसके बारे में थोड़ा बहुत पता था। इसी कारण से वो माया को इग्नोर कर रहा था। लेकिन किस्मत उन दोनों से कुछ और चाहती थी।
अनामिका वहीं सबके बीच में बैठे-बैठे अपनी कुछ अलग खिचड़ी पका रही थी। वो बाकियों की तरह ट्रिप एंजॉय करने नहीं बल्कि अपना कुछ मकसद पूरा करने आई थी।
करीब एक घंटे बाद बस खज्जियार पहुंच जाती है। सब लोग उतर जाते है। माया देखती है कि सच में वहां का तापमान डलहौजी से हल्का गर्म था और वहां का मौसम भी काफी सुहावना था।
सब लोग एक लॉज में चेक-इन करते हैं और अपने ट्रिप का पहला पड़ाव पूरा करते हैं। माया को वो जगह काफी अच्छी लगती है। वहां के देवदार से भरे जंगल उस जगह को किसी बाहर देश से भी कई गुना सुंदर बना रहे थे।
माया(मन में)- काश विक्रांत भी यहां होता।
दीप्ती- ओय, कहां खोई हुई है? चल फ्रेश हो जाते हैं फिर चलना भी तो साइट सीइंग के लिए।
सब पूरे दिन वहीं के मंदिर और, और भी कई जगहें जाते हैं। सब थके-हारे, सब चीजें देखने के बाद तुरंत अपने-अपने बिस्तर पर आकर लेट जाते हैं। लेकिन माया को इतनी थकन वाले दिन के बाद भी नींद नहीं आ रही थी।
माया अपने कमरे के बाहर आकर टहलने लगती है। माया का मन शांत नहीं था। उसे विक्रांत की याद आ रही थी। अपने थॉट्स से माया बाहर ही आई थी कि उसको एक जानवर के जोर से रोने की आवाज आती है। माया उसी ओर देखने जाती है जहां से आवाज आई थी। उसे वहां एक मरा हुआ कुत्ता दिखता है। उसकी गर्दन पर बड़ी और सीधी सुरांखें होती हैं। उन बड़ी गहरी सुरांखों के होने के बाद भी उस कुत्ते के शरीर से एक बूंद भी खून की नहीं निकल रही थी।
माया, ये देखकर जोर से चिल्लाती है। ये सुनकर दर्शित, दंश, दित्या, दक्ष और दीप्ती भी वहां बाहर आ जाते है और माया से पूछते हैं।
दीप्ती- अरे, इस बिचारे के साथ ये किसने करा?
माया- यार पता नहीं ये क्या हो गया इसे?
दीप्ती- तूने आस-पास किसी को जाते हुए देखा?
माया- नहीं यार। मैंने तो जैसे ही आवाज सुनी वैसे ही यहां आ गई। तब ये ऐसे ही मिला था।
दक्ष, दित्या, दर्शित तीनों ये सुनकर दंश को देखने लग जाते हैं।
दीप्ती माया को थोड़ा समझाकर और संभालकर उसको उसके कमरे में ले जाती है। बाकी सब भी अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं। माया ने जो देखा था वो उससे काफी परेशान थी। लेकिन फिर भी माया उस कुत्ते के लिए प्रार्थना करके, अपने दिमाग को शांत करके सो जाती है।
अगले दिन सब नाश्ता करके डिसाइड करते हैं कि ट्रेकिंग पर जाना सही होगा। वैसे तो कोई भी एक्सपर्ट नहीं था उस चीज में पर फिर भी सबने जाने का निश्चय किया। वहां जाकर ट्रेकिंग इंस्ट्रक्टर ने सबको अलग-अलग ग्रुप्स में डिवाइड कर दिया। चार ग्रुप्स बने जिनमें से माया, अनिका और दंश पहले ग्रुप में, नकुल, दक्ष और दर्शित दूसरे ग्रुप में, दित्या, तुषार और तरुण तीसरे ग्रुप में और उत्कर्ष, दीप्ती, श्रद्धा और विशाल आखिरी ग्रुप में थे।
सब ट्रेकिंग करना शुरू करते हैं। वो ट्रेक करीब १४ कि.मी. की थी। उसका आखिरी प्वाइंट कलातोप वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के पास जाकर था। सबसे आगे माया का ग्रुप था। उसके पीछे दीप्ती का, तीसरे नंबर पे नकुल का और आखिरी में दित्या का ग्रुप था। दित्या के ग्रुप में तुषार थोड़ा आलसी था। बात-बात पर उसका सोने का मन करता था। इसी वजह से दित्या का ग्रुप सबसे पीछे था।
माया और सब दोस्त अपनी-अपनी स्पीड से आगे बढ़े जा रहे थे। माया और अनामिका तो ठीक-ठाक स्पीड से चल रहे थे लेकिन दंश बहुत स्पीड से ट्रेक कर रहा था। माया और अनामिका दोनों को उसके साथ स्पीड मेंटेन करने में काफी दिक्कत आ रही थी।
ये देखकर अनामिका को थोड़ा गुस्सा आता है। अनामिका अपने बैग से एक बॉटल निकालती है। उसमे जो भी था वो खुद पीती है और माया को भी पिलाती है। माया को वो पीने के बाद एक दम से ऐसा लगता है कि उसकी सारी थकान जैसे दूर हो गई हो और वो अपनी नॉर्मल स्पीड से दुगनी स्पीड पर चल पा रही थी। जो दंश अभी तक उनके आगे भाग रहा था अब वो मानो उनके पीछे चल रहा हो। दंश को दोनों का ऐसे एक दम से तेज़ चलना कुछ ठीक नहीं लगा। दंश फिर अपनी स्पीड बढ़ाता है और दोनों के साथ-साथ चलने लग जाता है।
अनामिका(मन में)- बड़ा हीरो बन रहा था ना, अब आया ना ऊंट पहाड़ के नीचे।
इधर ये सब चल रहा था, उधर बाकी लोगों ने डिसाइड करा जल्दी चलकर माया के ग्रुप को पकड़ने का। दंश, माया, अनामिका अभी भी सबके आगे ही थे। उन्होंने ट्रेक आधी खत्म भी कर ली थी। अब बस देवदार के जंगल के रास्ते कालातोप वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के पास वाले फिनिशिंग प्वाइंट जाना बचा था।
माया और अनामिका इतना चलने के बाद थके नहीं थे और वो बिना रुके चले जा रहे थे। दंश भी उनके साथ-साथ चल रहा था। अचानक से पता नहीं कैसे अनामिका डगमगा कर गिर गई।
माया- अनामिका! संभाल कर।
दंश- ओके??? लगी तो नही तुम्हे?
माया उसे उठाती है तो देखती है कि अनामिका की सीधी बाजू पर एक कट लग गया था। वहां पर काफी नुकीले पत्थर थे जिनकी वजह से ये हुआ था। उस चोट से काफी खून बह रहा था।
माया उसका राइट आर्म देखने के लिए अनामिका को घुमाती है। वो चोट दंश की तरफ हो जाती है। इतना खून देखकर माया तो ठीक थी लेकिन दंश को पता नहीं क्या होने लगता है?
दंश खून देख कर अजीब सा फील करने लगता है। उसके मुंह पर गुस्सा साफ दिखने लग जाता है। उसकी आंखें जो पहले अच्छे से ग्रे रंग की थी अब वो धीरे-धीरे हल्के काले रंग की होने लगी थीं। माया पीछे मुड़ कर देखती है तो ये सब बदलाव वो देख लेती है।
माया दंश से कुछ कह पाती उससे पहले ही वो ऊपर की ओर भागने लगता है। ये देख कर माया को वैसे ही अजीब सा लगता है, जैसे उसे विक्रांत के बारे में लगा था। माया उलझन में थी कि दोनों में से किस को देखे?
माया वहीं अनामिका के पास रुककर अपने बैग में रखे फर्स्ट एड बॉक्स को निकालती है। उसमे जो पट्टियां रखीं थीं उनमें से एक को वो अनामिका को लगा देती है। फिर वहीं रुककर बाकियों के आने का इंतजार करने लगती है। अनामिका माया को आगे जाने को कहती है क्योंकि दंश अकेला था। माया न चाहते हुए भी दंश के पीछे चली जाती है।
माया के जाने के बाद अनामिका हंसते हुए उठती है और जो पट्टी माया ने अभी उसके बाजू में लगाई थे उसे खींच के निकल देती है। अनामिका की बाजू पर जहां अभी नुकीले पत्थरों से लगी चोट थी, वहां अब एक खरोच का भी निशान नहीं था। ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे पता चले कि वो कभी गिरी भी थी।
अनामिका- कितनी बेवकूफ है? अपनी मौत के पीछे ही जा रही है। देखते है कि मेरे बिछाए हुए इस जाल में चिड़िया फसती है या इसी जाल में उसकी जान जाती है?
थोड़ी देर बाद पीछे वाला ग्रुप अनामिका के पास पहुंचता है।
उत्कर्ष- अरे अकेली क्या कर रही है यहां? तेरे ग्रुप मेंबर्स कहां हैं?
अनामिका- यार पता नहीं। कुछ ज्यादा ही तेज़ चल रहे थे तो मैंने सोचा बाकी लोगों के लिए रुक जाऊं और उनके साथ आगे बढूं।
दीप्ती- अच्छा, तो मतलब माया और दंश ही है अकेले आगे?
श्रद्धा- चलो यार, लेट्स कैच अप विद them।
विशाल वहीं खड़ा अनामिका को देख रहा था। वो खुश था और मन ही मन भगवान को थैंक यू कह रहा था अनामिका को उसके ग्रुप में भेजने के लिए। दीप्ती का ग्रुप अब जल्दी चल रहा था जिससे वो माया और दंश के पास पहुंच सके।
यहां वो लोग जल्दी चल रहे थे। उधर माया अपनी पूरी जान लगा कर ऊपर चढ़ रही थी। माया करीब दो कि.मी. आगे आ चुकी थी पर उसे दंश अभी तक नही मिला था। माया अकेली ही उस जंगल में खड़ी थी। माया कई बार दंश को पुकारती है लेकिन कोई जवाब नही आता। उसकी ही आवाज गूंजकर उसके कानों में वापस आ जाति है।
माया दंश को न ढूंढ पाने की वजह से थोड़ा सहम जाती है। माया को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब चल क्या रहा है? माया वहीं खड़े रहकर दंश को अभी पुकार ही रही थी कि हर ओर से अचानक कोहरा छाने लग जाता है। वो कोहरा आम कोहरे की तरह सफेद नहीं था पर हल्के काले रंग का था। वो आम कोहरे से दोगुना मोटा भी था।
माया के आस-पास पूरा वही काला कोहरा हो जाता है। उसे ऐसे लग रहा था कि मानो भरी दोपहरी में भी रात सा अंधेरा हो गया था। माया को कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। एक दम से कुछ देर बाद माया को लगता है कि कोई चीज उसके पास से काफी तेज़ी से निकली हो। कुछ पांच मिनिट बाद माया को लगता है कि उसके पीछे कोई बिलकुल उसकी गर्दन के पास सांस ले रहा हो। वो सांस भी आम सांस की तरह नही थी वो ऐसे लग रही थी कि जैसे कोई बर्फीली हवा हो।
माया के गर्दन के रोंगटे खड़े होने लग गए थे। वो पीछे मुड़ना तो चाहती थी, पर उसके पैर मानों डर के मारे जम से गए थे। माया को वो ठंडी सांस अपने कानों के पास महसूस होती है और उसे किसी के फुसफुसाने कि आवाज आती है।
आवाज(फुसफुसाते हुए)- दूर रहो मुझसे...
ये कह कर वो जो भी था वहां से चला जाता है। कोहरा भी उस अनजान सी शक्ति के जाने के साथ ही हटने लगता है। माया डरी-सहमी सी वहीं खड़ी रह जाती है। कुछ देर बाद अनामिका और बाकी सारे लोग आ जाते है। माया बस लड़खड़ाकर गिरने ही वाली होती है कि दीप्ती और उत्कर्ष उसे बचा लेते हैं।
वो देखते हैं कि माया अपनी सुध-बुध में नही थी। वहां फिर नकुल, दक्ष और दर्शित भी आ जाते है। उनके पीछे-पीछे दित्या का ग्रुप भी आ जाता है।
दित्या, दक्ष और दर्शित तीनों वहां खड़े तो थे लेकिन वहां कुछ न कुछ अजीब हुआ था, उन्हें ये न जाने कैसे पता लग गया था। वो तीनों बेचैन थे। माया अभी भी अपने होश में नहीं आई थी।सब सोच रहे थे के क्या हुआ? और दंश कहा है?
सबको लग रहा था कि कहीं वो ट्रेक खत्म करके ऊपर तो नहीं चला गया। सब वहां से माया को लेकर, ऊपर की ओर बढ़ने लग जाते हैं। करीब दो घंटे बाद वो सब आखिरी प्वाइंट पर पहुंच जाते हैं। वहां देखते है कि दंश ऑलरेडी आकर सबका इंतजार कर रहा था।
दंश- यार कितनी देर? कब से यहां इंतजार कर रहा हूं सबका।
दंश की आवाज में एक अजीब सा एग्रेशन था। माया थोड़ी देर बाद होश में आ जाति है। दीप्ती उसको साथ लेकर वहां से चली जाती है। सब लोग ट्रेक से, वो देखकर, वापस आ जाते हैं।
माया अपने होटल के कमरे में अकेली ही बैठी थी। काले कोहरे में से जो आवाज उसे आई थी अभी भी उसके कानों में वही आवाज गूंज रही थी।
"दूर रहो मुझसे... दूर रहो मुझसे... दूर रहो मुझसे..."
माया(अपने आप से)- कौन था वो?
उतने में दीप्ती माया के कमरे में आ जाती है। वो माया के पास आकर बैठ जाती है। दीप्ती देखती है कि माया अभी भी वैसे ही परेशान थी। माया दीप्ती को सब बताना तो चाहती थी पर उसे डर था कि वो उसका विश्वास नहीं करेगी? या फिर उसको पागल समझने लगेगी।
माया की अब सबसे अच्छी दोस्त दीप्ती ही थी और उससे वो सब कुछ अब माया शेयर नही कर पा रही थी। दीप्ती के बाद दित्या ही माया की एक लौती दोस्त थी। दीप्ती माया को गले लगाकर वहां से चली जाती है। दीप्ती के जाने के बाद माया दित्या को कॉल करके अपने कमरे में बुला लेती है।
दित्या के पीछे छिपकर अनामिका भी आ जाती है। दित्या तो अंदर चली जाती है लेकिन अनामिका बाहर खिड़की के पास खड़े होकर अंदर जो भी हो रहा था उसे देखने और सुनने लग जाती है।
दित्या के अंदर आते ही माया रोने लगती है और कुछ देर तक उसे गले लगा कर रो ही रही होती है। ये देखकर अनामिका को लगता है कि माया को बस रोने के लिए एक कंधा चाहिए था। वो ये सोचकर वहां से चली जाती है।
माया कुछ देर रोकर दित्या के हाथ में हाथ रख देती है और कहती है।
माया(रोते हुए)- दीप्ती तो मेरा विश्वास नहीं करेगी पर उसके बाद तू ही मेरी दोस्त है। तू सुनेगी कि क्या हुआ था?
दित्या (माया को गले लगाते हुए)- ऑफ़ कोर्स। क्यों नही। चल रोना बंद कर और शुरू से बता कि हुआ क्या था?
माया जैसे-जैसे, जो भी कुछ हुआ था उस दिन सब दित्या को बता देती है। उसकी बात सुनकर दित्या एक दम हैरान हो जाती है। माया दित्या की शक्ल देख कर और रोने लग जाती है।
माया- देखा तुझे भी मेरी बात पर विश्वास नहीं।
दित्या (उसे चुप कराते हुए)- अरे पागल है क्या? मैं उस वजह से हैरान नही हूं। पर मुझे एक बात है जो मुझे काफी अजीब लगी।
माया(थोड़ा चुप हो कर)- कौनसी बात?
दित्या- यही की भाई अनामिका को जो चोट लगी थी उसे देखकर वो भाग गए...
इससे पहले दित्या अपनी बात खत्म कर पाती माया बीच में बोल पड़ती है।
माया- हां, पर दंश ने करा क्यों ऐसा?
दित्या (बहाना बनाते हुए)- अरे वो उन्हे ना... हीमोफोबिया है, तो खून देख कर डर जाते हैं।
माया- ओह अच्छा पर उसके बाद जो भी हुआ वो भी सच में हुआ था।
दित्या- हां बाबा मान लिया। लेकिन अभी भी एक चीज है जो एड अप नही हो रही।
माया- कौनसी चीज?
दित्या- अगर जैसे तूने कहा कि अनामिका को चोट लगी थी। तो जब हम वहां पहुंचे तो उसका सीधा हाथ एक दम ठीक कैसे था?
माया- यार क्या कह रही है? मैने खुद उसका फर्स्ट एड करा था।
ये कहकर माया अपने बैग में रखा फर्स्ट एड बॉक्स निकालती है। माया दित्या को दिखाती है कि उसमे जो १३ पट्टियां रखीं थीं उनमें से एक वहां नही थी। दित्या १३ में से १२ पट्टियां देख कर समझ जाती है कि उनमें से एक कही तो इस्तमाल हुई थी।
दित्या ये देख कर थोड़ा सोच में पड़ जाती है।उसे समझ नही आ रहा था कि क्या सच में माया ने वो सब देखा था? और अगर जैसा माया ने बताया वैसा ही हुआ था तो अनामिका की चोट अपने आप इतनी जल्दी ठीक कैसे हुई?
दित्या (मन में)- आखिर है कौन ये अनामिका? कोई आम इंसान तो नही लगती।
माया को दित्या की बातें थोड़ी अजीब सी लग रहीं थीं क्योंकि उसने खुद अनामीका की मलहम -पट्टी की थी।
अभी ट्रिप के करीब दो दिन बचे थे और सुबह जल्दी उठना भी था तो दित्या माया को गुड नाईट बोलकर अपने कमरे में सोने चली जाती है। माया सोने की पूरी कोशिश करती है पर जैसे ही वो आंख बंद करती है उसके सामने दोपहर का वो काला कोहरा आने लगता है और कानों में वही फुसफुसाने की आवाज गूंजने लगती है। माया हनुमानजी का नाम लेकर सो जाती है।
माया अभी सोई ही थी के तभी उसे लगता है कि वो मॉल रोड के पास वाले जंगल में आ चुकी थी। माया को वो रात उस ही रात जैसी लगती है जब वो मॉल रोड आई थी जब उसके दोस्तो ने ट्रुथ एंड डेयर खेलते वक्त उसे डेयर दिया था। माया जंगल के बीचों-बीच एक डरावने से बड़े पेड़ के पास खड़ी थी और उसे हर तरफ से वही फुसफुसाती आवाज आ रही थी।
अचानक से बाकी तीन दिशाओं से तीन लोग उस पेड़ के पास आजाते हैं। माया उनके चेहरे देखने की कोशिश करती है लेकिन उसको उनके चेहरे केवल धुंधले से ही नज़र आते हैं। उनमें से एक इंसान एक दम से भेड़िया बन जाता है, दूसरे इंसान की आंखें काले रंग की हो जाती हैं और दांत किसी जानवर की तरह पैने हो जाते हैं।
माया को ऐसा लगता है कि दोनों उसी तरफ उसको मारने आ रहें हैं। वो दो कदम पीछे मुड़ जाती है। लेकिन दोनों एक दूसरे से, जहां माया पहले खड़ी थी, वहीं लड़ने लग जातें हैं। दोनों लोग ऐसे लड़ रहे थे कि जैसे एक दूसरे को मारना चाहते हो। वो दोनों लड़ते हुए गिर जाते हैं। माया को पहले ऐसा लगता है कि दोनों ने एक दूसरे को मार गिराया। माया पास जाकर देखती है तो उसे दिखता है कि उसी तीसरे इंसान ने ही दोनों को चाकू मारकर उन्हें मार डाला था।
माया अचानक से छटपटा कर अपने बिस्तर से उठती है और अपने आप को अपने होटलरूम में ही पाती है। वो सब उसका बस एक बुरा सपना था बस। माया अपने आप से ही पूछती है कि क्यों इतना सोच रही थी वो इन सबके बारे में? वो अपने मन को शांत करके दोबारा सो जाती है।
अगली सुबह माया थोड़ा ठीक महसूस करती है। वो और सभी लोग ब्रेकफास्ट करने के लिए चले जातें हैं। माया ब्रेकफास्ट खत्म करके अपनी टेबल पर खाली ही बैठी होती है कि उतने में उसके पास दित्या आ जाती है।
दित्या- तूने मेरी बात पर कल विश्वास नहीं करा था ना। चल मेरे साथ।
दित्या माया को टॉयलेट के बहाने अपने साथ एक पिलर के पीछे ले जाती है। वो दोनों छिपकर कर किसी को देख रहें होते हैं।
माया- अरे यार, क्या कर रहें हैं हम? कुछ बताएगी?
दित्या- तू रुक तो, उस लड़की की सीधी बाजू को देख।
माया- क्या देखूं? देखने के लिए कुछ होना भी तो चाहिए ना।
दित्या- एक्जेक्टली, मैं वही तो दिखा रहीं हूं तुझे।
माया- क्या ही बोले जा रही है?
दित्या- उसे ध्यान से देख एक बार कि कौन है और मुझे बता कि कुछ समझ आया?
माया और दित्या जिसको छिप कर देख रहे थे, वो और कोई नही अनामिका ही थी। माया ये देख कर हैरान और परेशान दोनों हो जाती है।
माया- अरे यार, ये क्या? इसकी बाजू पर तो एक खरोच का निशान भी नही है।
दित्या- वही तो।
माया- पर यार, आई स्वेयर मैंने खुद इसका फर्स्ट एड करा था। आई थिंक तुझे भी अब मुझपर विश्वास नहीं होगा मुझपर।
दित्या- अरे बावली, आई बिलीव यू। मुझे तो पहले ही दिन से इस लड़की के बारे में कुछ ठीक नहीं लग रहा था।
माया- हां यार। नाउ थाट यू मेंशन्ड , सच में इसके बारे में कुछ तो अजीब है। ये हर अजीब चीज के आस-पास ही होती है।
ये कहकर माया जंगल वाला किस्सा दित्या को सुनाती है जब वो पहली बार अनामिका से मिली थी। जब वो और दीप्ती चार्ली को ढूंढने गए थे। दित्या भी माया को याद दिलाती है कि कैसे ट्रुथ एंड डेयर वाली रात उसके सामने से बॉटल माया की तरफ मुड़ जाती है और फिर माया के आने के बाद भी वो किसी को नही मिलती है।
माया- यार, मुझे लगता है समहाउ हर एक्सीडेंट से ये कनेक्टेड है। इसके यहां ऐसे अचानक से आने का जरूर कोई राज़ है जो हमे ही पता लगाना पड़ेगा।
दित्या- येस यू आर राइट। ये अगर यहां किसी को भी नुकसान पहुंचाने आई है तो मैं ऐसा नही होने दूंगी।
माया और दित्या ये बातें करके अपनी-अपनी टेबल पर आके बैठ जातें हैं। वो ऐसे एक्ट करतें हैं कि जैसे कुछ हुआ ही नही था अभी।
माया का मन तो था अनामिका से सीधे जाकर उसकी चोट के बारे में पूछने का। लेकिन क्योंकि अब दित्या सब जानती थी तो माया ने ऐसे जोश में आकर होश गवाना ठीक नही समझा। इधर, ये दोनों दोस्त कुछ शक कर रहे थे अनामिका पर, उधर दंश को भी अनामिका पर शक होना शुरू हो गया था।
डलहौजी में जैसा वेदर फोरकास्ट हुआ था वैसे ही बर्फ गिरनी शुरू हो गई थी। बर्फ के चलते सब लोग अपने-अपने घरों में ही थे। जहां शहर में सब कुछ नॉर्मल ही चल रहा था वहीं मॉल रोड के पास वाले जंगल में कुछ अजीब हो रहा था।
दो इंसानों के बड़े-बड़े ग्रुप्स एक साथ आमने- सामने खड़े थे। वो एक दूसरे को ही देख रहे थे और ऐसा लग रहा था कि किसी भी टाइम अब वो लड़ने वाले थे। सब की आंखें चमकने लग गई थी, सबके नाखून नॉर्मल इंसानों से करीब दो इंच लंबे हो गए थे और सबके दांत भी किसी खूंखार जानवर की तरह हो गए थे। ऐसा लग रहा थे कि वो लड़ने ही वाले थे के तभी वहां पर गरजते हुए वही सफेद भेड़िया आ जाता है जिसके माथे पर एक काला क्रीसेंट था। उसे देखकर सब शांत हो जाते हैं। वो सब उसके सामने आते ही उसके पैरों में गिरकर उसे प्रणाम करतें हैं।
बर्फ की परतें जैसे-जैसे बढ़ती जा रहीं थीं, माया को भी लग रहा था कि वैसे ही उसकी ज़िंदगी में भी कई सारे राज़ों की परतें चढ़ती जा रहीं थीं। माया को लग रहा था कि ये परतें उसे ही खोलनी पड़ेंगी और जल्दी। माया को पता लगाना था कि क्यों विक्रांत, दंश और अनामिका इतना अजीब बिहेव करते थे। उनके क्या राज़ थे।
माया खुद से वादा करती है कि वो इन सब चीजों के बारे में पता लगाकर ही रहेगी। लेकिन जब तक वो खज्जियार में है तब तक वो एंजॉय करेगी।
माया खज्जियार में दो दिन और रुकती है और फिर उसी भारी बर्फबारी में ही डलहौजी वापस आ जाती है। माया की ट्रिप वैसी बिल्कुल नही गई थी जैसा उसने सोचा था। आगे भी क्या होने वाला कोई नही जानता था। लेकिन माया को उसकी एक झलक पहले ही मिल चुकी थी।
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