माया विडिओ में देखती है की कई सारे भेड़ियें एक बड़े, सफेद भेड़िए के चारों तरफ एक झुंड बनाकर खड़े हैं। उस सेंटर में खड़े भेड़िए के माथे पर एक काले रंग का क्रेसेंट बना था। वीडियो में कुछ देर बाद उस सफेद भेड़िए के अलावा बाकी सारे भेड़िएं देखते ही देखते इंसान बन जाते हैं। इसके बाद वीडियो खत्म हो जाती है।
माया(खुदसे)- ये क्या? सच में क्या ये सब हुआ था? मतलब वो सब सच में हैं? और हमारें ही बीच में रहते हैं।
माया अभी भी अचंभे में थी। वो यही सोच रही थी कि इसके बारे में वो किस से पूंछे? रात बहुत हो गई थी। माया घबराते हुए जैसे-तैसे सो गई।
माया सुबह उठकर कॉलेज जाने के लिए तैयार होती है। उस दिन माया काफ़ी परेशान थी उस वीडियो को लेकर। उसे किसी न किसी को बताना था वो सब। पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा कौन है?
माया पहले अनिका से सारी बातें शेयर करती थी। मगर अब अनिका उससे क्या, किसी से भी बात नहीं करती थी। पापा ही एक ऐसे थे जो यहीं के थे और वो इस सब के बारे में कुछ न कुछ जानते भी थे। माया को वोही कुछ बता सकते थे। लेकिन उनसे ये बात पूंछती तो अजीब लगता। तो अंत में माया को बस एक ही नाम ध्यान में आया। उसे दीप्ती को ही इस सब के बारें में बताना ठीक लगा।
माया अकेली ही बाहर आ जाती है घर के। उस दिन अनिका की तबियत ठीक नहीं होती तो वो कॉलेज न जाना ही ठीक समझती है। बाहर आकर माया दीप्ती का वेट करती है। कुछ देर बाद दीप्ती वहां आ जाती है। माया सारी बातें उसे बता देती है। माया की बात सुनकर दीप्ती ठहाके मारकर हंसने लग जाती है।
दीप्ती- यार तू भी ना। लगता है तू टीवी सीरियल्स कुछ ज्यादा ही देखने लग गई है। मेरा परिवार कितने सालों से यहीं रह रहा है। ना उन्होंने कुछ ऐसा देखा ना मैंने।
माया- डी... मैं सच कह रही हूं। तू ही सोच उस प्ले में भी तो इन सबके बारे में बताया है। और फिर कैमरा की रिकॉर्डिंग भी तो है।
दीप्ती- वो प्ले तो पता नहीं किस सरफिरे ने लिखा है और वो सब फिक्शन ही है। रही बात तेरे चार्ली की तो, तुझे तो पता ही है वो किस हालत में मिला था हमें। हो सकता है के कुछ ग्लिच आ गया हो और दो रिकॉर्डिंग मर्ज हो गईं हों। तुझे उन्हें देखकर लगा होगा कि भेड़िए इंसान बन गए। चिल मार, ये सब कुछ नहीं होता।
माया(अपना मन मारकर)- हां हो तो कुछ भी सकता है।
इतनी बातें करके दोनों वहां से चलें जातें हैं। माया कॉलेज में भी यही सब सोच रही थी की उसके आस-पास उस समय कोई भी एक वृक हो सकता है। जो उसने देखा उसके बाद माया किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकती थी। पहले से दीप्ती ने उसका मज़ाक उड़ा दिया था। माया बेसुध होकर आगे ही बढ़ी जा रही थी की तभी वो सामने से आते हुए एक इंसान से टकरा जाती है। वो इंसान और कोई नहीं विक्रांत था।
विक्रांत- हे माया! क्या हुआ कहां खोई हुई हो आज?
माया- अरे यार कुछ नहीं। तुम्हे लगी तो नहीं?
विक्रांत- दोस्त कबसे एक दूसरे से झूठ बोलने लग गए? हां?
माया(मनमें)- इसे बताऊं की नही?
विक्रांत- क्या सोच रही हो? लगता है तुम मुझे अब भी अपना दोस्त नही समझती।
माया- क्या विक्रांत कुछ भी बोले जा रहे हो? ऐसा कुछ भी नहीं है।
विक्रांत- तो बताओ? क्या हुआ?
माया(बहाना बनाते हुए)- अरे कुछ नहीं यार। यही सोच रही थी की एक साथ बैकड्रॉप और फोटोग्राफी एग्जिबिशन के लिए फोटोज का काम कैसे होगा १२ दिन में?
विक्रांत- अरे! बस इतनी सी बात। चलो आज दोनों साथ चलेंगे फोटोज खींचने। कल की वजह से भी परेशान होंगी तुम तुम्हे थोड़ा अच्छा लगेगा।
ये कहकर दोनों माया और विक्रांत क्लास में चले जातें हैं। माया अंदर जाकर दित्या और नकुल के साथ बैठ जाती है। विक्रांत भी अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठ जाता है। दीप्ती पहले से आकर उत्कर्ष के साथ बैठ चुकी थी। क्लास शुरू होती है। माया का क्लास के समय भी पूरा ध्यान उस वीडियो में ही था जो उसने देखी थी। नकुल ये नोटिस कर लेता है। फिर मन ही मन मान लेता है कि कल जो हुआ शायद उसी की वजह से परेशान होगी वो।
माया फाइन आर्ट्स की क्लास में एक लाल चांद की पेंटिंग बनाती है। उस पेंटिंग को देख कर मित्तल मैम काफी इंप्रेस्ड हो जाती है माया से। वो माया से इंप्रेस्ड इसलिए थी क्योंकि वो पेंटिंग एक दम रियलिस्टिक लग रही थी। मित्तल मैम माया की काफ़ी तारीफ करती है। ये देखकर तरुण थोड़ा ईर्ष्यालु फील करता है।
क्लास खत्म होने के बाद माया और उसके क्लासमेट्स अपने-अपने काम में लग जाते हैं।माया और विक्रांत को वैसे भी दुगना काम करना था। एक तो पेंटिंग, दूसरा फोटोग्राफी। माया को अब सच में डर लग रहा था कि क्या काम टाइम पर खत्म हो भी पाएगा की नहीं?
बैकड्रॉप का काम अभी बहुत बचा था। माया और विक्रांत अपना सारा काम खत्म कर लेते हैं और वहां से फोटोज खींचने के लिए चले जातें हैं। माया को पहली बार विक्रांत के साथ ऐसे कहीं पर जाने में बहुत अजीब लग रहा था। लेकिन विक्रांत से अच्छा शायद ही कोई जानता था डलहौजी को। माया और विक्रांत काफ़ी सारी जगह विजिट करते हैं। पहाड़ी संस्कृति से जुड़ी काफी फोटोज खींचतें हैं। माया पहाड़ों से दिखते हुए डलहौजी शहर की फोटोज भी लेती है।
माया का विक्रांत के साथ बिताया हुआ टाइम काफी अच्छा कटता है। माया विक्रांत से उसका कैमरा मांगती है उसकी खींची हुई फोटोज देखने के लिए। विक्रांत को लगता है कि ये अच्छा मौका है वो वीडियो डिलीट करने का। वो भी माया की खींची हुई फोटोज देखने के बहाने उसका कैमरा मांग लेता है। माया भी बिना कुछ सोचे विक्रांत को अपना कैमरा दे देती है।
विक्रांत दूसरी तरफ के व्यू की फोटो लेने के बहाने उस तरफ चला जाता है। वहां जाकर वो उस वीडियो को डिलीट कर देता है। और माया को शक न हो इसलिए उस साइड की दो-तीन फोटो ले लेता है। विक्रांत को लगता है कि उसने किसी के भी देखने से पहले वो वीडियो डिलीट कर दी थी पर वो नहीं जानता था कि माया पहले ही वो वीडियो देख चुकी थी और उसी वजह से वो इतनी परेशान थी।
माया और विक्रांत काफ़ी देर से बाहर थे, बस सूरज डूबने ही वाला था। माया वहीं खड़े होकर उस डूबते हुए सूरज की एक फोटो ले लेती है। विक्रांत भी दूसरी तरफ से आ जाता है और उसे चार्ली पकड़ा देता है। सनसेट की फोटो देखकर माया की तारीफ़ करता है।
विक्रांत- वाह यार! तुमने तो काफी सही पिक खींची है लास्ट वाली।
माया- अरे कुछ भी। सूर्य देवता का शुक्रिया करो कि वो इतने सुंदर लग रहे थे डूबते वक्त।
विक्रांत माया की बात सुनकर हंसने लगता है।
विक्रांत- चलो लेट्स गो। शाम हो गई है।
माया- हां चलतें हैं।
माया का दिन तो अच्छा जा रहा था पर उसे बार-बार वो वीडियो याद आ रही थी। घर पहुंचकर वो देखती है की काका भी वहां आए हुए थे।
माया- मां, अब ठीक है अनिका?
वसुधा- हां बेटा। बस हल्का सा बुखार था। लगता है तेरी बहन को किसी की बुरी नज़र लग गई है।
काका, वहीं बैठकर वसुधा की ये सब बातें बहुत गौर से सुन रहे थे।
माया- अच्छा ऐसा है क्या मां?
वसुधा- और नहीं तो क्या?
काका- अच्छा बहुरानी। अब हम चलते हैं। कुछ काम हो तो याद करिएगा।
वसुधा- अच्छा ठीक है काका। राधेकृष्णा।
काका- राधेकृष्णा बहुरानी।
काका- माया बिटिया राधेकृष्णा।
माया- राधेकृष्णा काका।
काका वहां से उठकर चले जाते हैं। माया देखती है कि काका अपना चश्मा वहीं भूल गए थे। वो मन में सोचती है कि काका भी तो जानते होंगे सब। यही सही मौका है उनसे इस सब के बारे में कुछ पूछने का।
माया- मां देखो ना काका यहीं अपना चश्मा भूल गए। मैं देकर आती हूं।
माया ये कहकर बाहर भाग जाति है। भागते- भागते वो काका के पास पहुंच जाती है जो की घर से ज्यादा दूर नहीं गए थे। माया उनको पीछे से आवाज लगाकर रोक लेती है।
काका(रुकके और पीछे मुड़कर)- अरे! माया बिटिया काहे भगी-भगी आईं हैं?
माया(हांफते हुए)- अरे... वो... काका आपका चश्मा।
माया काका का चश्मा उनको पकड़ा देती है।
काका- बिटिया इतनी तकलीफ क्यों उठाई? हम कल आकर ले लेते।
माया- अरे काका आपको घर जाने में दिक्कत होती फिर। अच्छा काका मुझे आपसे एक बात पूछनी थी।
काका- अरे जुग-जुग जियो बेटा। हां बोलो क्या पूछना है?
माया- काका क्या आपने कभी किसी भेड़िया को इंसान बनते हुए देखा है?
ये सुनकर काका की बूढ़ी आंखों में डर साफ दिख रहा था। काका के पूरे शरीर में मानो करेंट सा दौड़ जाता है। और फिर काका एकदम गंभीरता से कहते हैं।
काका- बेटा इन बूढ़ी आंखों ने काफ़ी कुछ देखा है।
माया- तो बताइए ना आपने क्या देखा था?
काका अपने बचपन में पहुंच जाते हैं जब वो करीब १० साल के थे। ये बात करीब ६० साल पुरानी थी। एक रात काका अपने पिताजी को जंगल के रास्ते खाना देने जा रहे थे। काका के पिताजी किसान थे और रात में अपनी फसल को देखने गए थे। रास्ते में जाते वक्त उन्हें किसी के चिल्लाने की आवाज आती है। उन्हें वो चीख सुनकर ऐसा लगता है कि वो इंसान काफी ज्यादा दर्द में था। काका जहां से आवाज आई थी वहीं चले जाते हैं। वो एक पेड़ के पीछे छिपकर उसकी ओट से देखते हैं कि आखिर चल क्या रहा है।
वो देखते हैं की एक इंसान दर्द से कराह रहा था। उसके शरीर से हड्डियां टूटने की आवाजें आ रही थी। काका के देखते-देखते ही उस इंसान के नाखून लंबे होने लग जातें है। उसकी आंखों का रंग पीला हो जाता है और वो चमकने लगती हैं किसी एक पीले हीरे की तरह। उसके दांत भी किसी खूंखार जानवर की तरह लंबे हो जाते हैं। अंत में उसका पूरा शरीर बालों से ढक है। जब रात का पूरा चांद अपने चरम पर पहुंचता है तो वो इंसान पूरी तरह एक भेड़िए में तब्दील हो जाता है। ये देख कर काका हक्के-बक्के रह जाते हैं और डर के मारे वहां से भाग जाते हैं।
काका अपनी उन डरावनी यादों से बाहर आते हैं।
काका- यही सब हुआ उस पूर्णिमा की रात को। अगली सुबह जब पिताजी को सब बात बताई। तो उन्होंने कहा की ये सब मेरा वहम था। पर मुझे वो पीली चमकती आंखें आज भी ऐसे याद हैं जैसे कल ही की बात हो। उसके बाद से बिटिया हमने ठान लिया कि कभी रात में उस जंगल से नहीं जायेंगे।
माया को ये सब बताकर काका वहां से चले जाते हैं। माया ये सब सुनकर और भी सोच में पड़ जाती है। वो अपने आप ही कुछ रिसर्च करने का ठान लेती है।
माया को दित्या की बात याद आती है। उसे याद आता है कि वेरवॉल्फ को हिंदी में वृक कहते हैं। वो नेट पर इन सब चीजों के बारे में सर्च करती है पर उसे फालतू चीजों के अलावा कुछ नही मिलता। माया किसी किताब में ढूंढने का सोचती है। फिर उसे याद आता है कि उसका और बुक्स का काफ़ी सालों पहले ब्रेक अप हो चुका है। माया अनिका के पास जाती है क्योंकि वोही बुक्स पढ़ती है घर में और कई सारी भी, हर शैली की।
माया- तू ठीक है ना अब?
अनिका- हां ठीक हूं। तुझे क्या हुआ आज? आज मेरे पास कैसे आ गई?
माया- क्यों? बहन का हाल-चाल भी नहीं ले सकती अब मैं?
अनिका- पहले तो नहीं लिया कभी?
माया(मन में)- जी करता है कि इसका मर्डर कर दूं इस बात के लिए। पर क्या करूं सगी बहन है मेरी।
माया(हंसते हुए)- अच्छा सुन। तूने तो कई सारी बुक्स पढ़ी हैं ना। तो कोई ऐसी बुक है तेरे पास जिसमे वृकों के बारे में लिखा हो?
अनिका- हैं? ये वृक क्या होता है?
माया- अरे जीनियस हिंदी में वेरवॉल्फ को वृक कहते हैं।
अनिका- वो तो ऑनलाइन कई इंग्लिश ऑथर्स की मिल जाएंगी।
माया- अरे नहीं यार। किसी इंडियन ऑथर ने इन सब चीजों के बारे में नहीं लिखा?
अनिका- तुझे क्या करना है?
माया- सोच रही हूं कि थोड़ा इस शैली के बारे में पढूं और वैसे भी हमारे इंडियन ऑथर किसी से कम हैं क्या?
अनिका को माया की ये बात अच्छी लगती है। वो थोड़ा स्माइल करके उससे कहती है।
अनिका- अरे वाह! लगता है मेरा असर आ रहा है धीरे-धीरे। यहां अभी तो कुछ नहीं है मेरे पास। मगर कॉलेज की लाइब्रेरी में सुपरनैचुरल: हिंदी वाले सेक्शन में मिल जायेगी तुझे कोई न कोई बुक।
माया अनिका को गले लगाने ही वाली होती है।
अनिका- चिपक मत। दूर से ही, लव यू।
माया- तू नहीं सुधरेगी। हां दूर से ही लव यू तुझे भी।
माया ये कहकर वहां से चली जाती है। माया अपने कमरे में आती है और सो जाती है।
अगले दिन सुबह जल्दी उठकर, माया तैयार होकर कॉलेज के लिए निकल जाती है। कॉलेज में जाकर वो लाइब्रेरी में जाती है और लाइब्रेरियन से पूछती है कि पुरानी हिंदी सुपरनैचुरल से रिलेटेड किताबें कहां है? वहां जाकर, ढूंढने के बाद भी माया को कुछ नहीं मिलता है। माया जाने ही वाली होती है कि उसी शेल्फ के ऊपर एक छोटा सा डब्बा उसे रखा हुआ दिखता है। माया उचक कर उस डब्बे को उतार लेती है। डब्बा खोलती है तो उसमें एक पुरानी सी किताब रखी होती है।
माया किताब का नाम पढ़ती है। किताब का नाम संस्कृत में लिखा होता है। किताब का नाम होता है 'त्रिवंशम्'।
माया- हो सकता है इसमें कुछ हो।
वो किताब की धूल को साफ करती है तो उसे किताब पर एक निशान बना दिखता है। निशान के बीचों बीच एक काले रंग का उल्टा त्रिकोण बना था। त्रिकोण के तीनों कोनों से तीन अलग-अलग रंगों की रेखा निकली थीं। पहली रेखा नीले रंग की थी, दूसरी रेखा लाल रंग की और तीसरी रेखा पीले रंग की। पहली रेखा के अंत पर एक क्रीसेंट बना था और उस पर काले रंग में एक गरजते भेड़िए का निशान था। दूसरी रेखा के अंत पर एक लाल रंग का सूरज बना था जिसके बीचों बीच काले रंग में खुले हुए दांतों का निशान बना था। आखिरी रेखा के अंत में एक पेंटाग्राम बना था और उसके ऊपर काले रंग में एक जलती लपट का निशान बना था। त्रिकोण की हर भुजा के बीच से एक-एक रेखा निकली हुई थी। पहली भुजा जो नीले और लाल रेखाओं के बीच थी उसके ऊपर एक बैंगनी रंग की एक छोटी रेखा बनी थी। दूसरी भुजा जो लाल और पीले रंग की रेखाओं के बीच में थी उसके ऊपर एक नारंगी रंग की एक छोटी रेखा बनी थी। अंतिम भुजा जो पीले और नीले रंग के के बीच में थी उसके ऊपर एक हरे रंग की छोटी रेखा बनी थी।
माया को लगता है की उसी किताब में उसे सब राज़ पता लगेंगे। माया वो किताब सबसे छिपाकर ले जाती है और उसे एकांत में जाकर खोलती है। उस किताब में तीनों, वृकों, डाकिनियों और पिशाचों के बारे में लिखा था।माया वृकों के बारे में पढ़ती है तो उसे उनके बारे में उसे कुछ बातें पता चलती हैं।
उस किताब में लिखा था कि एक श्राप के कारण ही पूर्णिमा की रात को वृक अपने असली रूप में आ जाते हैं। उनको ज्यादातर सुनसान जंगलों में और पिशाचों की बस्ती के आस-पास देखा जाता है। वृक आमतौर पर एक झुंड में रहते हैं और हर झुंड का एक अद्वित होता है। जो सभी से अधिक ताकतवर होता है। उसे अद्वित इसलिए कहते हैं क्योंकि झुंड में उसके अलावा कोई उतना ताकतवर नहीं होता। उसकी ताकत अद्वितीय होती है।
वृकों को इंसानी रूप में पहचानना काफ़ी मुश्किल होता है। पर कुछ चीजें हैं जो वृक इंसानी रूप में होने के बाद भी अनजाने में कर देते हैं। १. वृक इंसानी रूप में भी उतने ही ताकतवर और गुस्से वाले होते हैं।२. उनको गुस्सा दिलाना काफ़ी आसान होता है।३. चांद या उससे जुड़ी किसी भी चीज से वो प्रभावित हो जातें हैं।४. अतीस के पौधे उनके लिए जानलेवा होते हैं।५. हर वृक के शरीर पर उनके ही झुंड का एक निशान होता है।६. अनजाने में भी कभी-कभी वृक एक ही नजर से किसी भी जानवर को डरा सकते हैं।७. वो दूसरे किसी वृक की आवाज को अनसुनी नहीं कर सकते।८. कोई भी प्रबल भावनाएं उनकी आंखों को वैसा बना सकती हैं जैसी वो उनके असली रूप में होती हैं।
माया उस किताब में बहुत कुछ पढ़ती है वृकों के बारे में। उसे ये सब पढ़कर जो अब तक उसके साथ हुआ था वो सब याद आने लगता है। उसे परसो की बात याद आ जाति है जब विक्रांत को गुस्से में देखकर वो भेड़िया भाग जाता है। माया अब ठान लेती है कि विक्रांत का जो सच है उसे जानकर रहेगी। वो किताब अपने बैग में रख लेती है और क्लास में चली जाती है।
पूरे दिन क्लास में भी यही सब सोचती रहती है कि विक्रांत के बारे में कैसे पता लगाए? अगर उसके शरीर पर कोई निशान है भी तो कैसे पता चलेगा? और वो उसे कैसे देखेगी? आज साथ में फिर से दोनों को फोटोज खींचने जाना था।
क्लास खत्म होती है तो माया विक्रांत के पास जाकर उससे घबराते हुए कहती है।
माया- विक्रांत सुनो...? आज चलना नहीं है क्या फोटो खींचने?
विक्रांत एक दम से पीछे मुड़ता है और माया उसे अचानक देखकर डर जाती है।
विक्रांत- अरे सॉरी। आज हुआ क्या? ऐसे डर क्यों गई?
माया- यार पीछे मुड़ गए ऐसे तो क्या करूं? डर गई मैं थोड़ा।
विक्रांत ये सुनकर हँसता है और पूछता है।
विक्रांत- क्यों मैं इतना डरावना लगता हूं तुम्हें?अच्छा, डोंट आंसर इट। आज कहां जाकर फोटो खींचनी हैं वो जगह सिलेक्ट करने की बारी तुम्हारी है। तो बताओ कहां चलना है?
माया- मॉल रोड के पास वाले जंगल में।
विक्रांत ये सुनकर शॉक में था कि माया ने ऐसी जगह चुनी थी।
विक्रांत- अच्छा अच्छा, पर वहां क्यों जाना है? पिछली बार गए थे तो याद है ना क्या हुआ था?
माया- अरे! अभी कौनसा अंधेरा हो गया है? जल्दी जाकर, जल्दी आ जायेंगे। जंगल वैसे भी सुंदर लगता है दिन में।
विक्रांत थोड़ा हिचकिचाता है पर फिर मान जाता है। माया और विक्रांत उस जंगल में जाते हैं। माया फोटो खींच रही होती है। वो सोच रही थी कि ऐसा करे क्या जिससे विक्रांत को गुस्सा आ जाए? माया, विक्रांत को काफ़ी परेशान करती है। मगर विक्रांत पर इसका कोई असर नहीं होता। माया को लगता है कि कहीं वो गलत तो नहीं थी? माया को एक आइडिया आता है। माया अपने कैमरा में खींची हुई पूरे चांद की फोटोज विक्रांत को दिखाती है। विक्रांत उसे देख कर एक डरावना सा मुंह बना लेता है।
विक्रांत(एक डरावनी सी आवाज में)- माया... दूर करो इसे मुझसे।
विक्रांत को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसपर धीरे-धीरे कोई अजीब सी शक्ति हावी होने लग गई थी। विक्रांत दूसरी तरफ अपनी आंखें मोड़कर उन्हें बंद कर लेता है। माया का शक हल्का-हल्का और बढ़ जाता है। विक्रांत अभी कुछ ठीक होता ही है कि तभी कहीं से एक भेड़िए के रोने की आवाज आती है। विक्रांत अपने आप को रोक नहीं पाता और वो उस आवाज की तरफ़ भागने लगता है। माया भी विक्रांत के पीछे भागने लगता है। कुछ देर बाद माया को, कुछ दूर पर विक्रांत अकेला खड़ा दिखता है। विक्रांत एक पत्थर के सामने खड़े होकर उसे घूंर रहा था।
माया थोड़ा आगे जाकर देखती है कि विक्रांत उस पत्थर को देखकर थोड़ा इमोशनल हो गया है। माया के देखते ही देखते विक्रांत की आंखें धीरे-धीरे हल्के पीले रंग में चमकने लगती हैं। कुछ देर बाद विक्रांत की आंखें बिल्कुल वैसी ही दिखने लगती हैं जैसे माया को शॉप में और फिर रात को इसी जंगल में दिखी थीं। विक्रांत को पता नहीं चलता है कि उसको, ऐसे माया ने देख लिया था। माया ऐसे बिहेव करती है जैसे उसने कुछ देखा ही नहीं और विक्रांत के कंधे पर हाथ रखकर बोलती है।
माया- विक्रांत...? अचानक से क्या हुआ तुझे? अभी तो ठीक थे?
विक्रांत अपनी आंख से आंसू पोंछते हुए।
विक्रांत- कुछ नही। आई डोंट वांट टू टॉक अबाउट इट।
ये कहकर विक्रांत, माया को वहीं अकेला छोड़ कर, वहां से चला जाता है। माया को ये सब कुछ ठीक नहीं लगता और उसको अब विश्वास होता है कि ये सब उसका वहम नहीं था। माया उस पत्थर को ध्यान से देखती है। उसपर एक निशान था। उस पर एक क्रीसेंट था और क्रीसेंट के साथ में ही एक भेड़िया का चिन्ह बना था।
माया उस निशान की फोटो खींचती है और अपने आप से कहती है।
माया- पक्का, कुछ न कुछ तो राज़ है इस विक्रांत का।
माया को लगता है कि ऐसा सा ही निशान उसने कहीं तो देखा था पर उसे याद नही आता जल्दी से कुछ कि कहा? माया, विक्रांत के घर जाने का डिसाइड करती है पर उसे पता नहीं था की वो रहता कहां था। उसे तो बस उसकी शॉप का पता था। माया वहीं जाने का सोचती है।
माया, विक्रांत की शॉप के बाहर आकर खड़ी थी। अंदर जाने ही वाली थी के तभी विक्रांत शॉप से बाहर आ जाता है। माया को वहां देखकर वो ज़रा चौक जाता है।
विक्रांत- अरे माया? यहां कैसे? फिरसे चार्ली के लिए कुछ चाहिए क्या? अभी तो नहीं दे सकता। तुम १५ मिनट अंदर ही रुको मुझे ज़रा कुछ काम है बाहर।
ये कहकर, माया के लिए दरवाजा खोलकर, विक्रांत वहां से चला जाता है। माया अंदर बैठकर शॉप की सभी चीजों को निहार रही थी। माया की नज़र तभी वहीं रखी एक पेंटिंग पर जाती है। उस पेंटिंग में माया देखती है एक आदमी शर्टलेस खड़ा था और अपने मसल्स फ्लेक्स कर रहा था। उस इंसान की छाती की राइट साइड पर वैसा ही निशान बना था जैसा उसने उस पत्थर पर देखा था। अब माया को कई सारे कारण मिल गए थे ये मानने के लिए कि विक्रांत भी एक वृक था। माया को याद आता है कि जब वो और विक्रांत पहली बार मिले थे और विक्रांत उसे लेंस देने के लिए ले गया था। तो विक्रांत ने माया को उस कमरे में आने से मना कर दिया था।
माया(मन में)- ज़रूर उस कमरे में कुछ न कुछ प्रूफ मिलेगा।
माया उठकर अंदर जाती है। वो उसी कमरे के बाहर रुकती है और सोचती है कि कहीं वो कुछ गलत तो नहीं कर रही है? पर फिर भी वो कमरे में चली जाती है और वहां देखती है। वहां कई सारे डब्बे रखे थे। माया एक-दो डब्बों को खोल के देखती है, उसमें लेंस और कैमरा के और सभी पार्ट्स रखे थे। माया को लगता है कि वो इन सब चीजों के बारे में कुछ ज्यादा ही सोच रही है। उसे लगता है कि सचमें उसे वहम हुआ होगा। उसे लगता है कि वो विक्रांत को वो समझ रही थी जोकि वो है नहीं।
माया जैसे ही वापस जाने के लिए पीछे मुड़ी ही थी के पीछे मुड़ने से पहले उसे एक तरफ़ से कुछ चमकता सा दिखता है। माया उसी तरफ जाती है और उस बंद डिब्बे को खोल देती है। उस डब्बे में कई सारी बड़ी-बड़ी जंजीरे और बड़े ताले भी रखे थे।
माया- ये यहां क्यों हैं?
माया तुरंत उन चीजों को देखकर उनकी फोटोज ले लेती है। जैसे उसने उस निशान की ली थी। माया वहां से बाहर चली जाती है।
माया, वहां पांच मिनिट और इंतजार करती है और फिर शॉप में रश्मि आ जाती है। माया रश्मि को नमस्ते करके और उससे काम का बहाना बनाके वहां से चली जाती है। रश्मि को माया का ये बिहेवियर और माया का उसे देखकर वहां से अचानक से चले जाना काफी अजीब लगता है। पर वो माया को कुछ कहती नहीं है और उसे जाने देती है।
विक्रांत अभी भी नहीं आया था। उधर माया अपने घर आ जाती है। माया सब चीजों से काफी कन्फ्यूज्ड थी। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या सच था और क्या नहीं?
माया को विक्रांत का पूरा सच जानना था। वो यही सोचते हुए, बिना देखे ही, अपना समान अपनी स्टडी पर रख देती है। माया फिर जाकर अपने बिस्तर पर लेट जाती है और जो हो रहा था उसके बारे में ही सोचने लगती है। माया के बैग से वो पुरानी किताब हल्की सी बाहर निकल आई थी। माया की नज़र उस पर जाती है। माया अपने बिस्तर से उठकर उसके पास जाती है और उसपर बने निशान को ध्यान से देखती है। माया को वो निशान काफ़ी फैमिलियर लगता है। माया अपना फोन निकालती है और अपने गैलरी में उस फोटो को देखती है जो उसने उस पत्थर पर ली थी।
माया उस किताब के बने नीले निशान को और फोटो वाले निशान को कंपेयर करती है। वो दोनों उसे काफ़ी एक जैसे लगते हैं। माया के दिमाग में अब एक साथ काफी सारे खयाल चल रहे थे।
अब ये देखकर वो और भी पक्का निश्चय करती है कि अब वो कैसे भी करके विक्रांत वृक है या नहीं? ये पता लगाकर ही रहेगी।
माया यही सोचती है कि वो क्या ऐसा करे की कन्फर्म हो जाए की विक्रांत वृक है। ये सोचते हुए माया को आइडिया आता है की अगली पूर्णिमा को वो विक्रांत को कैसे भी करके साथ ही रोक लेगी।
माया ये सोचकर खुश होती है। उस समय माया के फोन की घंटी बजने लगती है। वो फोन चेक करती है। फोन पर एक वेदर अलर्ट आया था। उसमें लिखा था कि लगभग १० से १५ दिनों तक डलहौजी में तेज़ बर्फबारी होने वाली थी।
उतने में दीप्ती उसके कमरे में भागकर आती है। वो माया को बताती है की कॉलेज से मेल आया है कि वेदर अलर्ट के चलते 'अनुभूति' अगले महीने तक शिफ्ट हो गया है और कॉलेज की भी अगले १५ दिन तक छुट्टी है।
माया- अरे यार? सारी मेहनत पर पानी फिर गया।
दीप्ती- हां ना यार।
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