शुक्रवार को वह सुबह से ही ज़रा ज्यादा ही उत्साहित थी। आज शाम वह तीसरा प्रत्याशी "कवीश" आजीवन मेरी कैद में रहने स्वयं ही अपनी आज़ादी खोने आ रहा है, तो यही सही। उसे 'कवीश' नाम के साथ एक किस्म का लगाव महसूस हुआ। शायद दोनों नाम 'क' से शुरू होते हैं इसलिए। फोटो में तो वह उसे अच्छा लगा। फ्रेन्च कट दाढ़ी, छरहरा मगर कसरती डील डौल, और गोरे रंग पर टी शर्ट में वो खूब फ़ब रहा था।
ऑफिस से लौटने के बाद उसने फिर अपने आपको सजाना शुरू कर दिया, जबकि वह जानती थी, इसका कोई फ़ायदा होने वाला नहीं है। लेकिन एक परंपरा का निर्वाह करना जरूरी था। सो वह अपने कमरे में अपने आप को एक 'फायनल टच' देने में व्यस्त हो गई। तभी उसकी माँ ने उसे आवाज लगाई,
" काव्या वे लोग आ चुके हैं।"
' यार ! ये माँ इन लड़कों के सामने इतनी दबती क्यों है ? जैसे हम लड़कियों को ही उनकी जरूरत हो। क्या हमारे बिना वे अपनी जिन्दगी के रास्तों पर चल पाऐंगे ? कोई वी. आई. पी. नहीं हैं वो लोग, अपनी लाईफ पार्टनर ही तय करने आ रहे हैं न, तो करें थोड़ा इंतजार..."
वह बड़बड़ा रही थी।
तभी "काव्या...काव्या" करती हुई अपर्णा उसके कमरे में आ गई।
" अच्छा नमकीन और मिठाई ले कर आना और जल्दी आना।"
माँ उसे हिदायत दे कर जितनी तेजी से आई , उतनी ही तेजी से वापस भी चली गई।
'मुझसे ज्यादा उत्साहित तो मेरी माँ है।' काव्या ने फिर सोचा।
उसने किचन में जा कर नमकीन और मिठाई की प्लेट ट्रे में रखी , फिर हाल में कदम रखा। उसने देखा लड़के के मम्मी पापा और साथ में एक और लड़की भी थी, जिसकी उम्र सोलह सत्रह वर्ष रही होगी, जो शायद कज़िन या कवीश की बहन होगी, सबको विश करने के पश्चात् टेबल पर ट्रे रख वह सोफे पर बैठ गई।
कविश उसे नज़र नहीं आया और उसकी आँखें अपने होने वाले वर को खोज रही थीं। काव्या के मुँह से अचानक निकल गया,
" तो कविश नहीं आए क्या ?"
" कबीर, कार पार्क कर बस आता ही होगा और ये मेरी बेटी और कबीर की छोटी बहन है। "
कबीर की माँ ने कहा। शायद उसने काव्या की तलाशती आँखों को पहचान लिया था।
' कबीर कार पार्क कर आता होगा...'
तो कवीश कहाँ हैं और यह यहाँ क्यों आया है ?' काव्या को अभी भी अपने प्रश्नों का जवाब मिला न था। एक पहेली की तरह सवाल उसके दिमाग में घूमने लगे।
" एक गलती हो गई मुझसे।" कबीर के साथ आई लड़की ने कहा।
" अब जो गलती हो गई है, तो कह भी दो।" उसकी मम्मी ने कहा।
उस लड़की ने काव्या से वस्तुतः स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा,
" मैंने गलती से आपको कबीर की जगह मेरे बड़े भाई कवीश की फोटो भेज दी थी, जो शादी करना ही नहीं चाहते हैं।" उस लड़की ने अपनी बात खत्म की।
"दरअसल हम कबीर के लिए लड़की देखना चाहते हैं। जो कवीश का छोटा भाई है।" कबीर की माँ ने कहा।
तभी कबीर ने कमरे में प्रवेश किया, और एक बिन बुलाए मेहमान की तरह चुपचाप सोफे पर बैठ गया। बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। काव्या को उसकी हालत पर हँसी आ रही थी। नमकीन और चाय निपटाने के बाद उसके पापा रमणीक लाल ने तमाखू और चूना अपनी हथेली पर रखा और फिर मलते हुए कबीर से कहा,
" भाई जरा घूमफिर आओ बाहर, कुछ बातें वातें करनी हो, तो कर लो।"
"जी हम यही हैं लाॅन में।" और वह उठ खड़ा हुआ और काव्या उसके पीछे पीछे लाॅन तक चली आई।
"देखिये मेरी बहन ने कोई गलती नहीं की है और उसने आपको कविश भाई साहब की फोटो जानबूझ कर भेजी है। दरअसल वह और मैं यहीं चाहते हैं कि आप हमारे बड़े भाई साहब कवीश से विवाह कर लें।"
फिर थोड़ा रूक कर कबीर ने कहा, "आपको शादी तो कवीश भैया से ही करनी होगी।"
"करनी होगी का क्या मतलब है ? और यदि ऐसा ही है, तो ये यहाँ क्यों आया है ? "काव्या ने अपने आप से प्रश्न किया...फिर कुछ विचार करते हुए कबीर से कहा,
''सुनो मिस्टर कवीश, कबीर, आई मीन आप जो भी हो। यह पहेलियाँ बुझाने का समय नहीं है। पिछले दो घंटो से मैं आप लोगो की हरकतें देख रही हूँ। मुझसे खेलने की कोशिश मत करना, आप लोगों को भारी पड़ सकता है। जो भी बात है, सही सही बताईये।"
काव्या की बात सुन कर कबीर अचानक सकते में आ गया।
" अ...अ...आप बैठिये। मैं सब बताता हूँ।"
वे दोनों लाॅन में लगे झूले पर बैठ गए। तब कबीर ने सारी बातें साफ करते हुए कहा।"
" काव्या जी !! बड़े भाई साहब कवीश शादी करना नहीं चाहते और मै राधिका को चाहता हूँ, जिससे शादी के लिये मेरे मम्मी पापा तैयार नहीं हैं। वे जबरदस्ती मुझे आपसे विवाह करने पर मज़बूर कर रहे हैं। उन्हें आशा है कि आपके पापा बिल्डर होने के वजह से दहेज़ अच्छा देंगे। मैं आपको किसी भी भुलावे में नहीं रखना चाहता। इसलिए सभी बातें साफ साफ कह रहा हूँ। अब जो आपकी मर्जी हो वहीं करें। "
काव्या यह सब सुन कर आवाक रह गई। ये लोग भी खूब अजीब है। जो शादी करना ही नहीं चाहता उसकी फोटो भेजते हैं, और जो शादी के लिए आया है, वो किसी और से शादी करना चाहता है । भई ये तो अच्छी खासी गलफ़त है। वो तो कबीर के बड़े भाई की सूरत अच्छी थी वरना मैं इस बेचारे कबीर को रिजेक्ट कर चुकी होती और मैं इससे क्या कहूँ कि वैसे तो मैने आपके भाई कवीश, को पसंद किया था मगर वो नहीं तो चलो आप ही सही। वैसे यह भी कहाँ मेरे साथ शादी करना चाहता है ? यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा हैं ? काव्या यह सब सोचते हुए माथा पकड़ कर बैठ गई।
थोड़ी देर सभी बातों पर गौर करने के बाद काव्या ने कहा,
" कबीर तुमने सच कह कर मेरी समस्या का समाधान कर दिया है, मगर तुम्हारे बड़े भाई शादी क्यों नहीं करना चाहते हैं ?"
घंटे भर के भीतर कबीर ने अपने बड़े भाई कवीश की दुःख भरी दास्तान काव्या के सामने रख दी।
सारी बात सुन कर काव्या ने पूछा,
" कबीर, वैसे तुम्हारे भैय्या करते क्या हैं ?"
"भैय्या बी. ई. आनर्स हैं और एक एम. एन. सी. में जाॅब करते हैं। और...." इतना कह कर कबीर चुप हो गया।
"और... और...क्या..." आगे बोलो मिस्टर कबीर"
"और अच्छा खासा कमाते हैं।"
यह सुन कर काव्या ने कहा,
" क्या मैंने वह पूछा...? काव्या ने मुस्कुराते हुए पूछा, फिर कहा,
"खैर...इस मामले में मुझे तुम्हारी सहायता की ज़रूरत होगी। तुम्हारी शादी उसी लड़की, क्या नाम बताया था तुमने ? हां ! राधिका, के साथ ही होगी, जिसे तुम चाहते हो और कवीश और मेरी शादी का क्या होगा यह वक्त ही बताएगा मगर इस वक्त तुम वैसा ही करना जैसा मैं कहूँ।"
यह सुनते ही कबीर ने काव्या का हाथ पकड़ते हुए कहा,
" आप मेरी मनःस्थिती समझ सकती हैं। भैया शादी कर नही रहें हैं, और मम्मी पापा मुझ पर विवाह के लिए दबाव डाल रहे हैं। अब यह कैसे संभव है कि मैं उनके पहले विवाह कर लूँ ? अब आप जैसा बोलेंगी मै वैसा करने को तैयार हूँ ।"
इतना कह कर वो काव्या के साथ भीतर चला आया,
" अगले कुछ दिनों के भीतर हम अपने अपने निर्णय से एक दूसरे को अवगत करवा देंगे।"
इतना कह कर कबीर और उसके मम्मी पापा वहाँ से चले गए ।
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