दहेज एक प्रेम कथा.. भाग 02

"मम्मा चाय.." घर आते ही काव्या ने कहा।

" क्या आज ऑफिस में ज्यादा काम था ?"

" मम्मी ऑफिस में कब काम कम होता है ?" 

उसने अपर्णा के सवाल का जवाब तो दिया नहीं बल्कि खुद ही सवाल किया।

" तुझे तीन साल हो गए हैं काम करते हुए, कितने रिश्तें आ रहें हैं, मगर तू है कि पता नही किस मुहूर्त के इंतजार में बैठी है ?" अपर्णा ने उसे चाय का कप देते हुए कहा।

" मम्मा ये लड़के, लड़कियों को क्यों देखने आते हैं ? क्या लड़कियाँ लड़कों को देखने नहीं जा सकतीं ? उन्हें लड़का पसंद हो तो वे हाँ  करे या फिर ना कर दे। हर वक्त लड़के की ही पसंद को क्यों प्राथमिकता दी जाती है ? और ऊफ…उनकी दहेज़ की माँग। ये दुनिया कहीं की कहीं जा रहीं है और हमारा समाज और हम बेवजह की इन परंपराओ को ढोते जा रहें हैं । " काव्या ने आगे कहा।

" बेटा यही समाज की परिपाटी है। हम तो इसे बदलने से रहे। " अपर्णा ने अपनी मजबूरी बतलाते हुए कहा।

" समाज की परिपाटी बदलेगी माँ, इसे बदलना ही होगा। आप जो भी रिश्ते हैं, फोटो सहित मुझे दें दें।"

काव्या की इस सहमति पर अपर्णा को पहले थोड़ा अचरज हुआ फिर उसने चैन की साँस ली। उसे क्या पता था, काव्या को लड़कों की फोटों और विवरण दे कर वह समस्याओं को ही आमंत्रित कर रही है।

अपर्णा द्वारा दिये गए फोटों में से उसने चार लड़कों के विवरण छाँट लिये। सबसे कम पसंद आने वाले लड़के को पहले और सबसे ज्यादा पसंद आने वाले को अंत में बुलवाने को कहा।

Cont..

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