इंद्रजीत का दास, लव धनुष, एक 16 वर्षीय लड़का था जो कद में छोटा और बड़ा प्यारा सा था।
लव धनुष
"महाराज, आज जगतपुर से एक और रहस्यमयी मामला सुनने में आया।" लव ने इंद्रजीत के हाथों से बाँसुरी लेते हुए कहा।
"अच्छा। फिर से?" इंद्रजीत ने पूछा।
लव ज़मीन पर इंद्रजीत के बगल में बैठ गया और हिरण के बच्चे को लाड़ करने लगा, "और इस बार भी वही घटना हुई, जैसी पहले हुई थी।"
"लगता है इस बार हमें स्वयं ही जाना पड़ेगा।" इंद्रजीत ने जवाब दिया और खड़ा हो गया।
"वे दोनों किस घटना के बारे में बात कर रहे हैं, कुमार?" मधुबाला ने पूछा।
अर्जुन इंद्रजीत की तरफ़ देखकर बोला, "यह तो वे दोनों ही हमें बता सकते हैं।" वह हँसा और उन दोनों की ओर दौड़ने लगा।
"अरे! कुमार!" मधुबाला अर्जुन के पीछे पीछे भागी।
"मित्र इंद्रजीत! मित्र इंद्रजीत!" यह कहते हुए अर्जुन इंद्रजीत के पास दौड़ा चला गया। उसके चेहरे पर मस्ती भरी मुस्कान थी।
इंद्रजीत अर्जुन को वहां देखकर हैरान था। "आप? यहाँ?" उसने पूछा।
"अरे। याद आया।" अर्जुन ने अपना हाथ आगे किया, "हमें महाराज से ही आज्ञा मिली है।" वह बोला।
स्वर्णलोक में महल के अंदर किसी भी कक्ष में जाने से पहले महाराज त्रिलोक नाथ की आज्ञा लेनी पड़ती है। हाथ पर स्वर्णलोक की मोहर होना मतलब आज्ञा होना।
लव ने आगे बढ़कर मोहर देखी, "सुप्रभात, मैं लव धनुष। कुमार इंद्रजीत का दास।" वह मुस्कुराया।
"मिलकर खुशी हुई।" अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा।
इसी बीच इंद्रजीत बिना कुछ कहे वहां से जाने लगा। यह देखकर अर्जुन और मधुबाला चकित थे। कोई अपने अतिथियों के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है। बस यही सोच सोच कर अर्जुन और भी ज़्यादा हैरान रह जाता था।
"लव, पक्षियों को दाना डाल कर ही वापिस आना।" इंद्रजीत ने जाते जाते कहा।
"जी...जी कुमार!" लव ने तुरंत जवाब दिया और अपने काम में लग गया।
अर्जुन भी हार मानने वालों में से नहीं था। उसने इंद्रजीत का पीछा किया, "रुकिये!'' वह दौड़ते दौड़ते चिल्लाया।
इंद्रजीत के पीछे दौड़ते दौड़ते कब वह बगीचे से बाहर और महल के अंदर घुस गया अर्जुन को ज्ञात ही नहीं हुआ। "मेरी बात तो सुनिए!" वह लगातार चिल्ला रहा था परंतु इंद्रजीत उसका जवाब देना तो क्या, पलट कर उसे देख भी नहीं रहा था। उसके लिए अर्जुन का होना ना होना एक समान था।
इंद्रजीत चलते-चलते अपने पिता के कक्ष में पहुंच चुका था और उसके पीछे-पीछे अर्जुन भी। अर्जुन के पीछे-पीछे मधुबाला और मधुबाला के पीछे ही लव भी। इंद्रजीत को छोड़ बाकी सभी साँस लेने के लिए रुक गए। इंद्रजीत तो मानों मिट्टी का एक पुतला था। कितनी ही रफ़्तार में क्यों न चलें,थकता ही नहीं। महाराज त्रिलोक नाथ और हँसराज राज्य के बारे में कुछ बातें कर रहे थे। चारों को एक एक करके कक्ष में आते देख कुछ समझ नहीं पाए।
"महाराज, जगतपुर से एक और मामला आया है। अब समय आ गया है कि स्वयं वहां जाकर स्थिति को हाथों हाथ लिया जाए। मुझे आज्ञा दीजिये।" इंद्रजीत ने सिर झुका कर अपने पिता से आज्ञा माँगी।
"लेकिन इस वक्त तो महल में कोई सैनिक उपलब्ध नहीं है।" हँसराज ने कहा।
उसी वक्त अर्जुन को तरकीब सूझी। वह तुरंत महाराज के सामने गया और बोला, "उसकी ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी, महाराज!"
"तात्पर्य-?"
"महाराज! हम है ना! मैं और मेरी सखी भी जाएँगे मित्र इंद्रजीत के साथ!" अर्जुन ने कहा।
"लेकिन आप तो हमारे अतिथि है।" महाराज ने जवाब दिया।
"हे ईश्वर, महाराज समझते क्यों नहीं।" अर्जुन ने सोचा और एक आँख बंद करके महाराज को आँख मारने लगा।
"ये आप क्या कर रहे हैं?! कुमार अर्जुन!" महाराज त्रिलोक नाथ कुछ समझ नहीं पा रहे थे। तभी हँसराज को अर्जुन की तरकीब समझ आ गई।
"महाराज महाराज!" हँसराज ने जल्दी से महाराज को धीमी आवाज़ में समझाया, "ये मित्र अर्जुन का तरीका है अनुज इंद्र से मित्रता करने का!"
"ओह! अच्छा!" महाराज ने तुरंत हामी भर दी, "आज्ञा है।"
अर्जुन खुशी से मुस्कुराने लग गया। लेकिन इंद्रजीत इस बात से खुश नहीं था। "किन्तु महाराज-"
"हमने जैसा कहा, वैसा ही होगा।" महाराज त्रिलोक नाथ ने अपना फैसला सुनाया। "कुमार इंद्रजीत के साथ कुमार अर्जुन सखी सहित जाएँगे।"
"और मैं भी महाराज!" बीच में लव चिल्लाया।
"आप तो सबसे ज़रूरी है, छोटे लव!" हँसराज ने हँसते हुए कहा।
अर्जुन ने शैतानी मुस्कान के साथ इंद्रजीत की ओर देखा, "अब आएगा मज़ा!"
"किन्तु महाराज, वह मामला...किस बारे में है?" मधुबाला ने पूछा।
"मैं बताता हूँ।" लव ने दिलचस्पी के साथ जवाब दिया। "जगतपुर में पिछले एक महीने से ग्रामीणों को सिर कटी चुड़ैल दिखाई दे रही है!"
"क्या?! चुड़ैल?!" मधुबाला ने हैरानी और डर के मारे कहा। उसने अर्जुन की ओर चिंता सहित देखा।
चुड़ैल का नाम सुनते ही अर्जुन के होश उड़ चुके थे। उसके चेहरे से ये साफ़ पता चल रहा था।
"अब आएगा मज़ा।" इंद्रजीत ने बदला लेते हुए कहा।
जगतपुर के लिए प्रस्थान करते समय, अर्जुन बिना सिर वाली चुड़ैल के बारे में सोच रहा था। वह हर पल उसके बारे में सोचकर डर जाता था।
"महाराज, डरिए मत। हमारे साथ राजकुमार इंद्रजीत है। वह आपकी पूरी रक्षा करेंगे।" मधुबाला ने कहा.
"यदि चुड़ैल अधिक शक्तिशाली हुई तो? और साथ ही, मैं अपनी रक्षा स्वयं कर सकता हूँ मधु!" अर्जुन ने कहा।
मधुबाला ने सिर हिलाया, "तो फिर डरना कैसा?" उसने कहा और मुस्कराई.
अर्जुन ने आह भरी और सिर हिलाया। आख़िरकार वह उस समय और कर भी क्या सकता था क्योंकि इंद्रजीत के साथ जाने का निर्णय उसका अपना था।
दो पहर बाद, वे अपने गंतव्य, यानि जगतपुर पहुंच चुके थे। अर्जुन को अजीब महसूस हुआ। दूसरों ने भी ऐसा ही आभास किया।
"क्या आपको भी यहां कुछ अजीब महसूस हो रहा है? कुमार इंद्रजीत? जैसे कि यहा कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे यहां नहीं होना चाहिए।" अर्जुन ने पूछा।
इंद्रजीत ने उसकी ओर देखा ते नही परंतु उत्तर अवश्य दिया, "हां, लेकिन चिंता जनक बात नहीं है, जो कोई भी हमारे प्रजा को परेशान करने की कोशिश कर रहा है, वह दंड का हकदार है।" उसने ऐसा कहा और जगतपुर के द्वार के अंदर चला गया। वह एक अजीब जगह थी. कोई भी इंद्रजीत को प्रणाम नहीं कर रहा था मानो वे उसे जानते ही नहीं हों।
"महाराज, क्या वे आपको पहचान नहीं सकते?" लव ने कहा.
वे गाँव में और आगे बढ़े और उन्हें एहसास हुआ कि लोग उनकी ओर देख भी नहीं रहे थे। एक बार भी नहीं. इसने इंद्रजीत को आश्चर्यचकित कर दिया। उसे लगा कि कुछ गड़बड़ है।
दूसरी तरफ, अर्जुन अपने आसपास के बाजारों को देखने में व्यस्त था। "वाह कितनी सुंदर मूर्ति है।" उसने एक मूर्ति को छुआ और मुस्कराया। वह पूरे सोने से बनी थी और किसी महिला की लग रहा थी।
तभी कोई इंद्रजीत के पास से गुजरा और उसके कंधे से टकरा गया। ऐसा लग रहा था जैसे उसने जानबूझकर ऐसा किया हो।
"कुमार!" लव ने इंद्रजीत की ओर देखा। इंद्रजीत को पहले ही समझ आ गया था कि वह व्यक्ति उन्हें अपने पीछे आने के लिए कह रहा है। सावधान होकर, वह मुड़ा और उस आदमी के पीछा करने लगा। उस आदमी ने सिर पर काला कपड़ा ओढ़ रखा था, उसका चहरा दिखाई नहीं दे रहा था। लव ने भी अपने कुमार का पीछा किया।
वह अजीब आदमी मुड़ नहीं रहा था और बस चलता रहा। इंद्रजीत को उसपर बहुत संदेह था, इसलिए उसने अपनी सतर्कता कम नहीं होने दी। वह उस स्थान का विश्लेषण कर रहा था जहां भी वह आदमी उन्हें ले जा रहा था। उसने खुद को लड़ाई के लिए भी तैयार कर लिया था। उसका हाथ पहले से ही अपनी तलवार पर था।
"कुमार, यह व्यक्ति हमें कहाँ ले जा रहा है?" लव ने पूछा।
"मुझें नहीं पता।" इंद्रजीत ने उसकी ओर देखे बिना उत्तर दिया। उसकी नजरें सिर्फ सामने वाले आदमी पर टिकी थीं। उसने एक क्षण के लिए भी अपनी आँखें उससे नहीं हटाईं। वह जानता था कि वह ऐसी जगह के लोगों पर भरोसा नहीं कर सकता जो शुरू से ही अजीब लग रही थी।
अर्जुन बाजार में मधु के साथ घूम रहा था। फल विक्रेता, लकड़ी के खिलौने बेचने वाले, कपड़ा बेचने वाले आदि सब थे किंतु सभी दुकान के मालिक अजीब थे। उनमें से कोई भी उन्हें बेचने का प्रयास नहीं कर रहा था। शाही कपड़े और गहने पहने होने के बावजूद उन्होंने उनकी तरफ देखा तक नहीं।
"राजकुमार, मुझे लगता है कि कुछ अजीब है। क्या आपको ऐसा नहीं लगता?" मधु ने अर्जुन के करीब चलते हुए पूछा। वह असुरक्षित महसूस कर रही थी।
"मधु, भयभीत ना हो। मैं हूँ ना।" अर्जुन ने कहा। कहीं ना कहीं उसके ह्रदय में भी भय था। यही कारण है कि उसने सतर्कता में कमी नहीं आने दी। वह जानता था कि वह ऐसी जगह पर भरोसा नहीं कर सकता।
तभी अचानक किसी ने उसे पीछे की ओर से पैर से खींच लिया।
"राजकुमार!" मधु चीख पड़ी।
वहीं, इंद्रजीत जिस व्यक्ति का पीछा कर रहा था, उसने भी उस पर हमला कर दिया था। वह अपनी तलवार से उससे युद्ध कर रहा था। काले कपड़े वाला आदमी तलवार चलाने में माहिर निकला। यदि लव ना होता तो इंद्रजीत को हानि पहुँच सकती थी। लव पत्थरबाजी में अच्छा था। जब वह हमलावर इंद्रजीत पर हमला करने के लिए उसकी ओर बढ़ा, तभी लव ने हमलावर के सिर पर निशाना साधा और सीधे उसके सिर पर वार किया। वह व्यक्ती पीड़ा में नीचे गिर गया।
"बताओ तुम कौन हो?" इतना कहकर इंद्रजीत ने उसके चेहरे से कपड़ा हटा दिया। वह एक जवान लड़का था। उम्र में लव जितना ही प्रतीत होता था। बस उससे कद में थोड़ा लंबा।
युवा लड़के ने तुरंत अपना चेहरा ढक लिया।
"इसका कोई फायदा नहीं। हम तुम्हारा चेहरा देख चुके हैं। अब हमें उत्तर दो कि तुम कौन हो और कहां से आए हो? क्या किसी ने तुम्हें भेजा है?" इंद्रजीत ने पूछा। उसकी तलवार नौजवान की ओर निशाना साधे हुए थी। लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया।
"मुझे मार डालो।" लड़के ने अंततः कठोर शब्द कहने के लिए अपना मुँह खोला।
"हम तुम्हें नहीं मारेंगे।" लव ने कहा। उसने चिंता सहित इंद्रजीत की ओर देखा। "राजकुमार?"
इंद्रजीत ने अपनी आँखें बंद की, और सिर हिलाया। उसने अपनी तलवार वापस म्यान में डाल दी, "जब तक तुम हमारी सहायता करोगे, हम तुम्हें कुछ नहीं करेंगे।" उसने कहा।
लड़के को खड़ा होने में सहायता करने के लिए लव ने अपना हाथ आगे बढ़ाया। लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया और खड़ा हो गया। ''आपको किस सहायता की ज़रूरत है?'' उसने पूछा। वह निडर लग रहा था।
"हम चाहते हैं कि तुम हमें इस अजीब जगह के बारे में बताओ।" इंद्रजीत ने उत्तर दिया।
"इस जगह के बारे में ऐसा क्या है जो आप जानना चाहते हैं?" लड़के ने पूछा।
"हम विशेष रूप से बिना सिर वाली चुड़ैल के बारे में जानना चाहेंगे।" लव ने उत्तर दिया।
लड़के ने तुरन्त उसकी ओर देखा, "आप उसके बारे में क्यों जानना चाहते हो?" उसने पूछा। वह एकाएक ध्यानमग्न लग रहा था।
"हम इस गाँव के लोगों की सहायता के लिए आए हैं।" लव ने उत्तर दिया। "किन्तु यहां के लोग अजीब हैं।"
"लोग..." लड़के ने आकाश की ओर देखा और लंबी आहे भरी। वहाँ चीलें थीं, "वे सब मर चुके हैं।"
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