महाराज से वार्तालाप करने के पश्चात अर्जुन और मधुबाला महल के बगीचे में टहल रहे थे कि अचानक उन्हें वहां राजकुमार इंद्रजीत दिखाई देता है।
"अरे! राजकुमार इंद्रजीत?" अर्जुन मधुबाला की ओर देखकर मस्ती भरे चहरे से मुसकराया।
उन्होंने दूर से देखा, इंद्रजीत ज़मीन पर बैठा हुआ था और तालाब की ओर देख रहा था। उसके हाथ में एक खरगोश था और कुछ उसके आस पास भी थे। अर्जुन और मधुबाला एक ही स्थान पर खड़े, दूर से सब कुछ देख रहे थे। तभी इंद्रजीत ने खरगोश को प्यार से ज़मीन पर रख दिया और अपने पास खड़े अपने दास से हाथ आगे करके कुछ माँगा। उस दास ने उसके हाथ में सम्मान सहित एक बाँसुरी रख दी। इंद्रजीत ने उस ही क्षण बाँसुरी को अपने होंठों से लगाया और मधुर सुर बजाने लगा। अर्जुन और मधुबाला की आंखें अपने आप ही बंद हो गई। मानो जैसे इंद्रजीत की बाँसुरी उन्हें कोई और ही दुनिया में ले गई हो।
देखते ही देखते इंद्रजीत के पास एक हिरण का बच्चा भी आ गया। और कुछ ही क्षण में बगीचे में घूम रहीं गाएँ और बछड़े भी आ गए।
इंद्रजीत की बाँसुरी खत्म होने पर तुरंत ही अर्जुन ने अपनी आँखें खोली। उसका ह्रदय अभी संतुष्ट नहीं हुआ था। वह और सुनना चाहता था। परन्तु इतने सारे पक्षु- पक्षी अपनी आँखों के सामने देख कर अर्जुन अचंभित था। वहा दो-चार मोर भी इकट्ठे हो चुके थे।
"इतना मनमोहक द्रष्य!" मधुबाला ने कहा।
अर्जुन को अपनी आँखों पर यकीन ना आया क्योंकि महाराज त्रिलोक नाथ और मंत्री हँसराज ने जो राजकुमार इंद्रजीत के बारे में बताया, ये उसके एकदम विपरीत था।
कुछ क्षण पहले-
"राजकुमार, हमें समझ नहीं आता कि मेरे पुत्र का अपनी ज़िम्मेदारीयों के प्रति इतना समर्पित होना अच्छी बात है या बुरी। मुझे डर है कि इन राजकीय ज़िम्मेदारीयों को अपने कँधों पर लिए, वह अपना जीवन जीना ही ना भूल जाए।" महाराज त्रिलोक नाथ ने कहा।
"महाराज, समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।" अर्जुन ने जवाब दिया।
महाराज ने दुख भरी आह ली और बोले, "उसकी आँखों में कोई चमक हमें दिखाई नहीं पड़ती। उसका ह्रदय नदी के उस मजबूर किनारे जैसा है जो चाहते हुए भी, नदी को बहने से रोक नहीं सकता। उसकी ज़िंदगी भी उसकी आँखों के सामने से गुज़रती जा रही है परंतु वह कुछ करता ही नहीं।" महाराज की आंखों में एक पिता का दर्द था।
"कुमार अर्जुन, एक विनती है हमारी आपसे।" हँसराज ने कहा। उसकी आवाज़ में भी एक चिंता सी थी।
"कैसी विनती?" अर्जुन ने पूछा।
हँसराज आगे बढ़ा, "कर्प्या करके कुमार इंद्रजीत को जीवन खुल के जीने का सही मार्ग दिखाए!"
महाराज ने भी विनती की, "हम आपके बहुत बहुत आभारी होंगे!"
अर्जुन अब किसी भी तरह से इंकार नहीं कर सकता था।
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Updated 21 Episodes
Comments
Bhavneet Kaur
शुक्रिया
2024-11-13
0
Ataru Moroboshi
More chapters, please! I am dying to know what happens next.
2024-10-23
1