परछाई का पीछा

गोवा की रात बाकी शहरों से अलग थी। समुद्र की लहरें लगातार किनारे से टकरातीं और बीच पर फैली चकाचौंध धीरे-धीरे सन्नाटे में घुल जाती। लेकिन इस सन्नाटे के पीछे भीड़ से कहीं ज़्यादा खतरनाक चीज़ें छिपी थीं—साज़िशें।

अर्जुन सिंघानिया का प्राइवेट जेट डाबोलिम एयरपोर्ट पर उतरा। वह काले कैज़ुअल कपड़ों में था, ताकि भीड़ में घुल सके। लेकिन उसकी चाल, उसकी नज़रें और उसके कदम इस बात की गवाही दे रहे थे कि वह किसी मिशन पर है।

एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही उसकी टीम का पुराना साथी कैप्टन रणवीर उसकी कार के पास इंतज़ार कर रहा था।

“स्वागत है, सर। मिशन मुश्किल है। गोवा के अंडरवर्ल्ड में हर किसी को खबर है कि आप यहाँ आए हैं।”

अर्जुन ने बैग पिछली सीट पर रखते हुए कहा,

“मुश्किल मिशन ही असली मिशन होते हैं, रणवीर। और दुश्मन जितना चौकन्ना हो, मेरी जीत उतनी तेज़ होगी।”

कार सीटी बजाते हुए बीच रोड पर निकल गई।

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रास्ते में रणवीर ने लैपटॉप खोला और नक्शा दिखाते हुए बोला,

“इंटेलिजेंस के मुताबिक़, संजना चौहान को गोवा पोर्ट के पास किसी पराने गोदाम में रखा गया है। वहाँ ‘काला नेटवर्क’ नाम की गैंग का कब्ज़ा है। उनके सरगना का नाम है विक्रम माल्होत्रा। वही आदमी है जिसने चौहान एम्पायर पर कब्ज़ा करने का सपना देखा था।”

अर्जुन की आँखें सिकुड़ गईं।

“विक्रम माल्होत्रा… उसे मैं अच्छे से जानता हूँ। वह बिज़नेस में भले हार गया, लेकिन गली के खेल में माहिर है। उसकी सबसे बड़ी ताक़त डर है।”

रणवीर ने धीमी आवाज़ में कहा,

“लेकिन सर, यह गैंग अकेली नहीं। इसके पीछे कुछ बड़े राजनेता और बिज़नेस टायकून खड़े हैं। शायद वही लोग जिन्होंने संजना को गायब करवाया।”

अर्जुन ने सीट पर सीधा होकर कहा,

“तो इसका मतलब है कि ये सिर्फ़ एक रेस्क्यू मिशन नहीं। यह लड़ाई सिस्टम से है। और मैं पीछे हटने नहीं आया।”

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उधर, पुराने गोदाम में संजना अब भी बंधी हुई थी। उसके चेहरे पर थकान साफ़ दिख रही थी, लेकिन उसकी आँखें अब भी बुझी नहीं थीं। उसने दीवार पर उभरते पैरों की आवाज़ सुनी। दरवाज़ा खुला और अंदर आया विक्रम माल्होत्रा।

लंबा-चौड़ा, काले कोट में, आँखों में नफ़रत का ज़हर। उसने मुस्कुराते हुए संजना के पास आकर कहा,

“दो साल हो गए, और फिर भी तुम नहीं टूटी। मानना पड़ेगा, हिम्मत है तुममें।”

संजना ने बेख़ौफ़ होकर जवाब दिया,

“हिम्मत दौलत से नहीं आती, विक्रम। और तुम कभी समझ ही नहीं पाओगे कि चौहान नाम किस मिट्टी से बना है।”

विक्रम ने उसके गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा,

“चौहान नाम अब मिट्टी में मिल जाएगा। तुम्हारा साम्राज्य मेरे हाथ में होगा। और लोग तुम्हें भूल जाएँगे।”

संजना ने होंठ भींच लिए, लेकिन उसके दिल में कहीं गहराई से उम्मीद अब भी ज़िंदा थी।

“अर्जुन आएगा। और जिस दिन वह आया, तुम्हारा साम्राज्य राख हो जाएगा।”

विक्रम हँसते हुए बाहर चला गया।

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रात गहराती जा रही थी। अर्जुन और रणवीर अब पोर्ट एरिया के पास पहुँच चुके थे। वहाँ चारों तरफ़ हथियारबंद गार्ड थे। दूर से गोदाम की ऊँची दीवारें नज़र आ रही थीं।

रणवीर ने दूरबीन से देखा और कहा,

“कम से कम बीस आदमी हैं। सभी ऑटोमैटिक गन से लैस।”

अर्जुन ने घड़ी देखी।

“आधी रात। यही सही वक्त है। हमें साइलेंट ऑपरेशन करना होगा।”

रणवीर ने चिंता जताई,

“लेकिन सर, अगर अंदर सच में संजना है और दुश्मन को पता चल गया, तो वे उसे खत्म करने में देर नहीं करेंगे।”

अर्जुन ने मुस्कुराते हुए जेब से एक छोटा सा ब्लेड निकाला।

“रणवीर, लड़ाई सिर्फ़ हथियारों से नहीं जीती जाती। दिमाग और हिम्मत ही असली हथियार हैं।”

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गोदाम के अंदर गार्ड्स गश्त कर रहे थे। अचानक बाहर की लाइट एक-एक कर बुझने लगी। गार्ड्स घबरा गए। तभी एक परछाई हवा की तरह आई और अगले ही पल तीन गार्ड ज़मीन पर गिरे हुए थे।

वह परछाई थी—अर्जुन।

उसकी चाल में सेना के कमांडो का अनुशासन था। हर वार सटीक, हर कदम बेमिसाल। रणवीर उसकी बैकअप में था, लेकिन असली खेल अर्जुन ही खेल रहा था।

कुछ ही मिनटों में बाहरी घेरे के आधे गार्ड ढेर हो चुके थे।

अर्जुन ने हैंडसिग्नल से रणवीर को रोक दिया और खुद गोदाम के अंदर बढ़ गया।

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अंदर का नज़ारा डरावना था। दीवारों पर जंग, ज़मीन पर लोहे की जंजीरें और बीच में बैठी संजना। उसकी आँखें जैसे अचानक चमक उठीं जब उसने दरवाज़े पर अर्जुन की परछाई देखी।

“अर्जुन…” उसके होंठों से फुसफुसाहट निकली।

लेकिन अर्जुन के आगे बढ़ने से पहले ही अलार्म बज उठा। चारों तरफ़ से गार्ड्स दौड़ते हुए अंदर घुस आए।

विक्रम माल्होत्रा भी छत से नीचे उतर आया। उसने तालियाँ बजाते हुए कहा,

“वाह अर्जुन सिंघानिया। मैंने सुना था तुम बिज़नेस में शेर हो। लेकिन लगता है असली खेल तुम्हारा यही है—कमांडो बनना।”

अर्जुन ने उसकी आँखों में आँखें डालकर कहा,

“तुम्हारे जैसे गिद्धों से साम्राज्य बचाने के लिए शेर बनना ज़रूरी है।”

विक्रम हँसा।

“तो आओ, देखते हैं कौन असली शेर है।”

उसके इशारे पर दर्जनों गार्ड्स ने हथियार तान दिए। गोदाम अब युद्धभूमि बन चुका था।

अर्जुन ने अपनी जैकेट से एक छोटे स्मोक ग्रेनेड निकाला और जमीन पर फेंक दिया। धुएँ का गुबार छा गया। गोलियों की बौछार शुरू हुई।

धुएँ के बीच, सिर्फ़ एक आवाज़ गूँजी—“संजना, मैं आया हूँ।”

संजना की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसके दिल में अब यक़ीन पक्का हो गया था।

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रात की खामोशी अब गोलियों की गूंज से टूट चुकी थी।

गोवा की ज़मीन पर एक नई जंग छिड़ चुकी थी—एक जंग जहाँ हीरो और खलनायक आमने-सामने थे।

और इस जंग का पहला वार अर्जुन सिंघानिया ने कर दिया था।

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