Hero The Fighter
रात का समय था। मुंबई की सड़कें बारिश से भीगी हुई थीं और शहर की चमकदार रोशनी भी उस अंधेरे को पूरी तरह मिटा नहीं पा रही थी। हर कोने पर नज़रें थीं, हर कोने पर सवाल थे—लेकिन जिस सवाल ने सबसे बड़े साम्राज्य को हिला दिया था, उसका जवाब अब तक किसी के पास नहीं था।
सवाल सिर्फ़ एक था—संजना चौहान कहाँ है?
दो साल बीत चुके थे। चौहान ग्रुप की उत्तराधिकारी, करोड़ों की दौलत की मालकिन और अपने तेवरों से इंडस्ट्री को हिला देने वाली लड़की अचानक से गायब हो गई थी। पुलिस से लेकर प्राइवेट एजेंसियाँ तक, हर जगह उसकी तलाश हुई। लेकिन न कोई सुराग, न कोई शव। बस खामोशी।
इस खामोशी ने दुश्मनों को ताक़त दी। चौहान एम्पायर अब लड़खड़ा रहा था। डाइरेक्टर बोर्ड बंट चुका था। हर कोई उस साम्राज्य को निगलने के लिए तैयार था, जिसका नाम कभी सिर्फ़ संजना चौहान के नाम पर खड़ा था।
लेकिन एक जगह ऐसी थी जहाँ अब भी उम्मीद ज़िंदा थी—दिल्ली के एक आलीशान दफ़्तर की ऊँची इमारत। वहाँ बैठा था एक आदमी, जिसके बारे में दुनिया दो बातें जानती थी। पहली—वह अरबों का इंडस्ट्रियलिस्ट है। दूसरी—वह किसी से हारना नहीं जानता।
उसका नाम था—अर्जुन सिंघानिया।
काले सूट में सजा हुआ, गहरी आँखों में ठंडी चमक लिए वह अपनी मेज़ पर रखी एक फाइल को देख रहा था। फाइल में संजना की तस्वीर थी—मुस्कुराती हुई, पर आँखों में किसी गहरे दर्द का अक्स।
अर्जुन ने धीरे से फाइल बंद की और बगल में बैठे अपने सहायक से कहा,
“कितने लोग लगे हैं इस केस पर?”
“सर, अब तक चार टीम भेजी गई हैं। लेकिन कोई रिज़ल्ट नहीं। लगता है लड़की…”
सहायक ने बात अधूरी छोड़ दी।
अर्जुन की आँखें तेज़ हो उठीं।
“वो जिंदा है। और जब तक मैं जिंदा हूँ, कोई उसे हाथ नहीं लगा सकता।”
उसके स्वर में एक कमांडो की सख़्ती थी, किसी बिज़नेसमैन की ठंडक नहीं। क्योंकि असलियत यही थी—अर्जुन सिर्फ़ एक इंडस्ट्रियलिस्ट नहीं, भारतीय सेना का वह कमांडो भी था जिसने सीमा पर दर्जनों दुश्मनों को धूल चटाई थी। उसका असली चेहरा दुनिया से छिपा था।
पर अब वह चेहरा बाहर आ रहा था।
अर्जुन ने खिड़की से बाहर देखा। बारिश थम चुकी थी। सड़क पर गाड़ियों की आवाज़ों में उसे कहीं दूर से आती गूंज सुनाई दी—जैसे कोई साज़िश फुसफुसा रही हो।
“सर, एक ख़बर मिली है।” सहायक ने मोबाइल आगे बढ़ाया।
“गोवा के अंडरवर्ल्ड सर्किट में संजना का नाम सुना गया है। कोई कह रहा है, उसे ज़िंदा देखा गया।”
अर्जुन ने बिना समय गँवाए मोबाइल उठाया और नक्शे पर उँगली रख दी।
“गोवा। वहीं से शुरुआत करेंगे।”
उसकी आँखों में अब सिर्फ़ मिशन था।
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उधर समुद्र किनारे, गोवा के एक पुराने गोदाम में अंधेरा पसरा था। टूटी हुई खिड़कियों से आती हवा परदे हिला रही थी। और उस अंधेरे के बीच एक लड़की बंधी हुई थी। हाथ-पाँव जंजीरों में जकड़े, होंठों पर खामोशी, आँखों में न बुझने वाली आग।
वह थी—संजना चौहान।
दो साल से दुनिया उसे मरा हुआ मान चुकी थी, लेकिन वह जिंदा थी। अपने हर दुश्मन का चेहरा उसने याद रखा था। हर वो पल जब उसे क़ैद कर यातना दी गई, उसकी रगों में बदला भर गया।
लेकिन उसकी सबसे बड़ी उम्मीद अब भी बाहर थी।
“क्या अर्जुन… आएगा?” उसने बुदबुदाया।
आवाज़ इतनी धीमी थी कि हवा भी उसे सुन न पाई।
दरवाज़ा अचानक खुला। कुछ हथियारबंद लोग अंदर आए। उनके बीच में खड़ा था एक खलनायक—चेहरे पर नकाब, हाथ में सिगार। उसने संजना के करीब आकर कहा,
“तुम्हें लगा कोई आएगा तुम्हें बचाने? कोई नहीं आएगा, संजना। तुम्हारे जैसे लोग बस कागज़ पर राज करते हैं, असल ज़िंदगी में नहीं।”
संजना ने उसकी आँखों में देखा।
“तुम मुझे मार सकते हो, पर झुका नहीं सकते।”
नकाबपोश हँस पड़ा।
“देखते हैं, तुम्हारी ये हिम्मत कब तक रहती है।”
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उसी वक्त, दिल्ली से उड़ान भरता एक प्राइवेट जेट आसमान चीर रहा था। उसमें बैठा अर्जुन सिंघानिया अपने हथियारों की लिस्ट चेक कर रहा था। बिज़नेस टाइकून की जगह अब सामने था एक योद्धा, जिसका मिशन साफ़ था—संजना को हर हाल में वापस लाना।
लेकिन अर्जुन जानता था, यह रास्ता आसान नहीं। हर कदम पर खलनायक खड़े होंगे। ऐसे लोग जिनके पास पैसे, ताक़त और राजनीति का पूरा खेल था।
पर उसके पास था सिर्फ़ एक चीज़—जुनून।
जुनून उस लड़की को बचाने का, जो सिर्फ़ चौहान एम्पायर की वारिस नहीं, बल्कि उस आग का हिस्सा थी जिसने अर्जुन के भीतर के फाइटर को फिर से जगा दिया था।
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रात गहरी हो चुकी थी। गोवा की लहरें गरज रही थीं।
और इस गरज में एक नई लड़ाई का आग़ाज़ होने वाला था।
अर्जुन सिंघानिया उतर चुका था मैदान में।
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