वो साया इंच दर इंच नलिनी को घसीट रहा था खालिद की ओर, .......उस लकड़बग्घे की आँखों में बदला लेने का जुनून और वासना थी, ......... उसे बेरहमी से कुचल देने की, ........ उसके दामन को तार-तार करने की। वो साया उसे घसीटते हुए खालिद के बेहद करीब ले आया, नलिनी अब उससे सिर्फ दस कदमों की दूरी पर थी, .......
लकड़बग्घे के खूंखार जबड़ों से लार नीचे गिरी, ........ इशारा मिलते ही वो साया नलिनी को फिर घसीटने लगा, ........ शिकार को लकड़बग्घे की अंतिम गिरफ़्त में पहुंचाने के लिए, तीन कदम दूर एक पुराना लोहे का बड़ा भारी संदूक था, उसके उस पार थी नलिनी की मौत।नलिनी को अब बचने की उम्मीद नहीं थी, उसने चीखना बंद कर दिया ...... उसने अपनी आँखे की, ....... शायद जिंदगी के बचे पलों में किसी को याद करना चाहती थी, ..... या शायद किसी से माँफी माँगना चाहती थी। नलिनी उस संदूक के एकदम पास थी, तभी अचानक उसने संदूक को एक हाथ से पकड़ लिया, ....... वो साया एक पल को ठिठका, उसने नलिनी के बालों को छोड़कर उसका हाथ पकड़कर खींचा लेकिन नलिनी की पकड़ मज़बूत थी।
उस साये ने एक बार फिर नलिनी के हाथ को पकड़कर ज़ोरदार झटका दिया, दर्द से नलिनी की पकड़ संदूक के हत्थे से ढीली हुई, बारिश बहुत ही तेज थी और नलिनी की पकड़ उस संदूक के हत्थे से छूट रही थी, उसकी उम्मीद अब टूटने के कगार पर थी, वो खुद अब टूटने वाली थी। खालिद सिर्फ दो कदम दूर था, नलिनी को और आतंकित करने के लिए उसके साथी अपने कपड़े उतार कर उसे भूखी नज़रों से देख रहे थे|
अचानक उस साये ने जोर से नलिनी का हाथ खींचा और नलिनी का हाथ संदूक से छूट गया उसने बिना सोचे समझे उस लोहे के संदूक में अपनी मुट्ठी से मारा "....धप्प!!....", उसकी यह हरकत देखकर सब कुछ पलों के लिए ठिठके फिर अचानक जोर से हँसे, नलिनी ने जोर से चीख़ते हुए एक और बार संदूक पर अपना हाथ मारा ".....धप्प!!!!!.."।
क्या कर रही थी वो?..... खालिद को मज़ा आने लगा था इस खेल में और वो गरजा ".....शेरा!!!......" उस साये ने पलटकर खालिद की तरफ़ देखा "....शेरा!!..... जब हम सब यहाँ पर बिना कपड़ों के हैं, ....... तो इसके बदन पर कपड़े क्यों है?....." वो साया किंकर्तव्यविमूढ़ सा खालिद की तरफ़ देखता रहा, खालिद ने नलिनी की तरफ़ देखा और बोला ".... कपड़े उतार इसके!!!......." खालिद और उसके सभी गुंडों ने अपने लंगोट खोल दिए, अब वो सब पूर्ण रूप से नग्न थे, तभी एक गुंडे ने एक कुर्सी ला कर रखी जिसमें खालिद बैठ गया और बोला "..... नहीं!..... कपड़े फाड़ कर उतार, एक-एक करके, ....... नंगा कर इसे!!! ...... और मेरी जाँघ पर बैठा!!!.."।"नहीं!!!!......." नलिनी ने अपनी पूरी शक्ति से चीखते हुए उस संदूक पर जोर से मारा "..ध!...म्.....म...म!!!!!!!!!..."।
आवाज़ इतनी ज़ोर से आई कि सब के सब हैरान हो गए, वार इतना शक्तिशाली था कि संदूक अपनी जगह से तीन इंच खिसक गया था जिसे एक इंच भी हिलाने के लिए चार-पांच लोग लगते थे। ...... हैरानी का ठिकाना तो नलिनी का भी नहीं था, जिस जगह पर उसने संदूक पर हाथ मारा था उस जगह पर हाथ का निशान उभरा आया था।
सबके सब चुप थे तभी एक और आवाज आई "..धम्म!!....म!!!!!!...", इस बार संदूक एक फीट तक खिसका, डर की एक लहर सभी गुंडों में दौड़ गई जिससे खुद खालिद भी अछूता नहीं था। पहली बार खालिद को मौत का डर लग रहा था, उसने संदूक पर दनादन गोलियां बरसानी शुरू कर दी उसकी देखा-देखी में सभी ने संदूक पर अनगिनत गोलियां बरसाना शुरू कर दी।गोलियां संदूक से टकरा कर बिखर रहीं थीं, वो साया कब उन गोलियों की चपेट में आकर मर गया कुछ पता ही नहीं चला। संदूक से टकराती गोलियां नलिनी को लग सकती थी तभी अचानक ज़ोरदार आवाज संदूक से आई "....धम्म!!!!!!!!!...." और उस संदूक का ऊपरी ढक्कन सात फीट उछलकर दूर गिर गया, फिर अचानक वो संदूक इस तरह से लुढ़का कि उसका मुँह नलिनी की तरफ़ था। खालिद खतरे को भाँपकर पीछे हट रहा था लेकिन गोलियां लगातार संदूक पर बरस रहीं थीं।तभी कोई बिजली की गति से संदूक के अंदर से निकला और नलिनी के हाथ को उसने कसकर पकड़कर बड़ी तेज़ी से दौड़ने लगा। नलिनी इससे पहले कुछ सोंच पाती वो उसके साथ भाग रही थी, ना जाने कैसे उसमें इतनी शक्ति आ गई थी कि वो बस दौड़े जा रही थी, उस शख़्स का चेहरा ढ़ंका हुआ था लेकिन उसकी आँखें जानी पहचानी लग रही थी।
गोलियां अब भी चल रही थी, शायद वो उन दोनों का पीछा कर रहे थे तभी अचानक उस नकाबपोश ने नलिनी को दाईं तरफ खींचा, नलिनी की बांह दर्द से कसक उठी तभी एक R.P.G. राकेट प्रोपेलड ग्रेनेड ठीक वहीं फटा जहां कुछ सेकेंड पहले वो थी।वो अभी संभली भी नहीं थी कि दूसरा R.P.G उसके ठीक बगल से निकला, वो दोनों भागते-भागते एक बड़ी दीवार के समानांतर दौड़ने लगे, नलिनी की जान गले में अटकी थी वो डर से चीखने ही वाली थी कि अचानक तीन R.P.G एक साथ उस दीवार से टकरा कर फटे और पूरी की पूरी दीवार उन दोनों के ऊपर भर-भराकर गिर गई।".... नहीं!!!!" नलिनी चीख रही थी कि तभी "नलिनी!!!...", ये किसकी आवाज़ आई?? "....नलि!!!!!नी!!!!..." सुबोध ने उसे बड़ी जोर से हिलाया था और नलिनी ने आखिरकार अपनी आँखें खोली जैसे वो नींद से जागी हो, ....... गोलियां तो अब भी चल रही थी लेकिन वो दृश्य नहीं था, बाहर से कई लोग गोलियां चला रहे थे और खिड़की पर खड़ा वो शख्स उन सबकी गोलियों का जवाब दे रहा था। नलिनी ने बांई तरफ देखा तो छत और दीवार का कुछ हिस्सा टूट गया था, शायद कोई विस्फोट हुआ था।"उन लोगों ने R.P.G फायर किया है हम पर!......." सुबोध बोला ".... तुम ठीक तो हो ना??.." उसकी आँखों में चिंता थी। नलिनी खामोश थी, उसने एक बार फिर उस नकाबपोश को देखा, ....... उसका अतीत उसके सामने खड़ा था, ....... लहुलुहान!-------///// कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त /////
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