रात का आसमान जैसे किसी दर्द को अपने अंदर छिपाए बैठा था।
बारिश की बूँदें धीरे-धीरे ज़मीन पर गिर रही थीं — जैसे किसी अधूरी कहानी की हर पंक्ति पर स्याही टपक रही हो।
शहर के बाहरी इलाके में, पुराने गोदाम के भीतर गोलियों की गूंज अब भी थमी नहीं थी।
धुएँ, चीख़ और बारूद के बीच — दो लोग अपनी आख़िरी साँसें ले रहे थे।
“भाई… मत बोलो कुछ, मैं तुम्हें यहाँ से निकाल लूंगा…”
वह काँपती आवाज़ उस जवान लड़के की थी जो अपने घायल दोस्त को गोद में लिए बैठा था।
उसके चेहरे पर खून, आँखों में डर और होंठों पर सिर्फ एक नाम था —
“आर्या…”
“वादा करो…” घायल आदमी ने काँपते हुए कहा, “मेरी… बहन… आर्या का… ख़याल रखना… वह बहुत मासूम है… उसे… इस अंधेरी दुनिया से दूर रखना…”
“तू बस साँस ले, मैं सब संभाल लूँगा…”
लेकिन अगले ही पल उस दोस्त की पलकों पर जो ठहराव आया, वह वक़्त के लिए भी एक सन्नाटा बन गया।
गोदाम की दीवार से टिके उस आदमी की आँखें बंद हो चुकी थीं —
और उसके साथ ही, रुद्र रावत के भीतर कुछ टूट गया था।
वह अब वही आदमी नहीं रहा जो कुछ देर पहले था।
वह अब माफ़िया रुद्र बन चुका था —
वह शख्स जो हर वादा निभाने के लिए खून तक बहा सकता था।
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दो दिन बाद,
एक छोटे से मंदिर में, सफेद चुन्नी ओढ़े एक लड़की काँपती हुई बैठी थी।
उसकी आँखों में आँसू थे, हाथों में पिता की पुरानी तस्वीर, और सामने पुलिसवाले जो उसे बार-बार वही सवाल पूछ रहे थे।
“आपके भाई की मौत एक माफ़िया गैंग फाइट में हुई है,”
इंस्पेक्टर ने ठंडी आवाज़ में कहा।
“अब आपकी सुरक्षा हमारे हाथ में है।”
लड़की ने धीमे से सिर हिलाया, लेकिन उसके चेहरे पर सिर्फ डर नहीं था —
वह किसी ऐसे इंसान की तरह दिख रही थी जिसने ज़िंदगी का पूरा सहारा एक पल में खो दिया हो।
उसका नाम था आर्या शेखावत —
एक मासूम, सीधी-सादी लड़की जो अपने भाई के अलावा दुनिया में किसी और पर भरोसा नहीं करती थी।
उसी शाम,
जब वह अकेली घर लौटी, तो दरवाजे के बाहर एक लंबी काली गाड़ी खड़ी थी।
उसके साथ खड़े दो आदमी ब्लैक सूट में थे।
“मैडम, हमारे बॉस आपसे मिलना चाहते हैं।”
आर्या ने डर से पीछे हटते हुए कहा,
“कौन बॉस? मुझे किसी से नहीं मिलना।”
तभी पीछे से एक भारी, गहरी आवाज़ आई —
“वो बॉस… जिसका तुझसे एक वादा बाकी है।”
आर्या मुड़ी —
और सामने वही शख्स खड़ा था जिसकी आँखों में तूफ़ान था।
काले कोट, ठंडी नज़र, और हल्के खून के निशान उसके कॉलर पर अब भी थे।
“मैं रुद्र रावत हूँ… तेरे भाई आर्यन का दोस्त।”
वह धीमे से बोला, “मरते वक्त उसने तुझे मेरे हवाले किया था।”
आर्या के होंठ काँप गए, “भाई…”
उसके गले से बस इतना ही निकला।
रुद्र ने एक गहरी साँस ली, फिर बोला —
“अब तू अकेली नहीं है। अब तू मेरी ज़िम्मेदारी है।”
आर्या की आँखों में डर और अविश्वास था,
“लेकिन… आप माफ़िया हैं… मैं…”
वह बीच में ही रुक गई।
रुद्र ने उसकी ओर बढ़ते हुए ठंडी आवाज़ में कहा —
“हाँ, मैं माफ़िया हूँ… पर तेरे भाई के लिए, मैं अपनी जान भी दे दूँगा।
और अगर इस दुनिया में तुझे बचाने का एक ही तरीका है…
तो वो है — तुझे अपनी बीवी बना लेना।”
आर्या चौंक गई।
उसके भीतर जैसे सब कुछ थम गया।
“क्या? शादी… आपसे?”
रुद्र की निगाहें अब नरम हो गईं,
“तेरे भाई की मौत से ज़्यादा मुझे किसी का डर नहीं।
पर तेरे ऊपर अब हर दुश्मन की नज़र है, आर्या।
और सिर्फ मेरे नाम की ढाल ही तुझे बचा सकती है।”
मंदिर की घंटी फिर से बजी —
और उसी आवाज़ में जैसे किस्मत ने एक नया अध्याय खोल दिया।
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वह रात दोनों के लिए आख़िरी सुकून भरी रात थी —
क्योंकि अगली सुबह, माफ़िया रुद्र रावत ने एक मासूम लड़की आर्या शेखावत से शादी की —
वो भी बिना इज़हार, बिना इजाज़त, सिर्फ़ एक वादा निभाने के लिए।
लेकिन किस्मत जानती थी —
यह शादी सिर्फ़ सुरक्षा नहीं, एक ऐसी कहानी की शुरुआत है
जहाँ प्यार और खतरा दोनों एक ही सांस में पनपेंगे।
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To be continue
सुबह का सूरज उस दिन कुछ अजीब था।
मानो उसकी किरणें भी डर कर ज़मीन पर उतर रही हों।
मंदिर के बाहर वही पुरानी काली गाड़ी फिर से खड़ी थी,
और आर्या — अब रुद्र रावत की पत्नी — सफेद साड़ी में चुपचाप खड़ी थी।
उसकी मांग में सिंदूर था, लेकिन वह स्याही जैसी भारी लग रही थी।
न कोई मंगल गीत, न कोई बधाई।
बस हवा में सन्नाटा और एक आदमी की ठंडी नज़र।
रुद्र बिना कुछ कहे गाड़ी का दरवाज़ा खोलता है,
“बैठो।”
उसकी आवाज़ में कोई ग़ुस्सा नहीं था,
लेकिन उसमें वो आदेश छिपा था जो किसी को झुकाने के लिए काफी था।
आर्या ने पल भर को उसकी आँखों में देखा —
वहाँ कोई कोमलता नहीं थी, बस एक अनकही ज़िम्मेदारी।
वह गाड़ी में बैठ गई।
शहर से कुछ किलोमीटर दूर,
रुद्र का बंगला मानो किसी दूसरे संसार का हिस्सा था —
उँची दीवारें, सशस्त्र गार्ड, चारों तरफ़ कैमरे,
और अंदर एक ऐसी शांति, जो डर से पैदा होती है।
गाड़ी जैसे ही मुख्य गेट से अंदर गई,
आर्या ने अपने हाथ कसकर जोड़े —
उसे लगा, वो किसी महल में नहीं, एक किले में दाखिल हो रही है,
जहाँ हर खिड़की के पीछे एक रहस्य है।
दरवाज़ा खुलते ही उसके सामने एक लंबा हॉल था,
दीवारों पर पुराने चित्र,
झूमरों से गिरती सुनहरी रोशनी,
और बीच में खड़ा रुद्र —
जो अब किसी राजा की तरह नहीं,
बल्कि किसी कैदी के मालिक की तरह लग रहा था।
“यह तुम्हारा घर है अब,”
उसने धीमे से कहा।
“लेकिन यहाँ कुछ नियम हैं —
मेरी बातों से बहस नहीं,
बाहर जाने की इजाज़त नहीं,
और सबसे ज़रूरी — किसी पर भरोसा नहीं।”
आर्या की आँखों में आँसू आ गए।
“क्या मैं अब भी आपकी सुरक्षा में हूँ या आपकी कैद में?”
रुद्र कुछ पल तक उसे देखता रहा,
फिर धीरे से बोला,
“दोनों में फर्क बस नाम का है, आर्या।
कभी-कभी बचाने के लिए भी कैद करनी पड़ती है।”
वह मुड़ गया —
पर जाते-जाते उसकी नज़र आर्या की आँखों पर अटक गई,
जैसे उनमें कुछ ऐसा दिखा जो उसके अंदर के पत्थर को भी दरकाने लगा।
रात ढल चुकी थी।
आर्या को एक बड़ा कमरा दिया गया था,
पर उस कमरे की हर दीवार उसे देखने वाली लग रही थी।
एक खिड़की से बाहर गार्ड्स की परछाइयाँ दिख रही थीं।
वह धीरे-धीरे कमरे में टहलती रही,
फिर बिस्तर के पास रखी मेज़ पर एक फ्रेम देखा —
उसमें उसके भाई आर्यन की तस्वीर थी।
आर्या की आँखें भर आईं।
वह तस्वीर को सीने से लगाकर बोली,
“भाई… आपने उसे क्यों चुना…
वो तो डरावना है… खामोश है… जैसे कोई जख़्म हो जो बोलता नहीं…”
तभी पीछे से एक आवाज़ आई,
“क्योंकि मैं वही ज़ख़्म हूँ… जिसे तेरे भाई ने अपनी जान से सींचा है।”
आर्या मुड़ी —
रुद्र दरवाज़े के पास खड़ा था।
उसकी आँखों में थकान थी, और हाथ में एक पुराना लॉकेट।
“यह तुम्हारे भाई का था,”
उसने कहा और लॉकेट आर्या की ओर बढ़ाया।
“वो हमेशा तेरी तस्वीर अपने पास रखता था।
मुझे पता है वो तुझसे कितना प्यार करता था।”
आर्या ने काँपते हुए हाथों से लॉकेट लिया,
“और आपने उसका बदला लिया?”
रुद्र ने गहरी साँस ली,
“अभी नहीं… लेकिन लूँगा।
जो लोग उसे मारकर गए हैं,
उनके नाम मैंने दिल की दीवार पर खुद लिए हैं।
अब वो एक-एक कर मिटेंगे।”
आर्या ने धीरे से कहा,
“लेकिन मैं नहीं चाहती किसी की मौत मेरे नाम पर हो…”
रुद्र की नज़र उस पर अटक गई,
“अब तेरे नाम पर जो होगा, वही दुनिया देखेगी —
क्योंकि अब तू रुद्र रावत की बीवी है।”
उसकी आवाज़ में वो हुक्म था जो किसी वादे से ज़्यादा भारी था।
आर्या चुप रही —
पर उसके भीतर कुछ बदलने लगा था।
वो अब डर नहीं रही थी,
बल्कि उस डर के पीछे छिपे आदमी को समझने की कोशिश कर रही थी।
रात के सन्नाटे में रुद्र अपने स्टडी रूम में बैठा था,
सामने आर्यन की फाइल खुली थी,
उसमें हर उस इंसान का नाम था जिसने उसकी मौत में हाथ दिया था।
पर फाइल के कोने में लगी एक तस्वीर पर उसकी नज़र रुक गई —
आर्या की।
वो तस्वीर देखकर उसके होंठों पर एक अनजानी मुस्कान आई।
“तेरे भाई का वादा था आर्या…
पर अब ये वादा… मेरे दिल का बन गया है।”
सुबह की हल्की रोशनी कमरे में फैली थी,
पर आर्या के लिए वो कोई नई शुरुआत नहीं थी —
वो अब भी उसी सन्नाटे में थी जहाँ हर साँस किसी डर से टकराती थी।
रात की बात उसके ज़ेहन में बार-बार घूम रही थी —
रुद्र की आँखों की ठंडक, उसके लहजे का हुक्म,
और उस एक वाक्य की गूंज —
“अब तू रुद्र रावत की बीवी है।”
आर्या ने दर्पण में खुद को देखा।
वो वही चेहरा था, लेकिन आँखों में मासूमियत के साथ अब सवाल भी थे।
वो धीरे-धीरे नीचे आई —
जहाँ हवेली की हवा ही किसी नियम की तरह बँधी लग रही थी।
नीचे हॉल में कई आदमी खड़े थे —
काले सूट, कंधे पर बंदूक, और चेहरे पर सन्नाटा।
जैसे हर व्यक्ति एक रहस्य हो।
रुद्र सोफ़े पर बैठा कुछ फाइलें देख रहा था।
उसने नज़र उठाई — और कुछ पल तक बस आर्या को देखा।
वो सफेद सूट में थी, बाल हल्के खुले,
और उसकी चाल में वह डर झलक रहा था जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही हो।
“नीचे आने की ज़रूरत नहीं थी,”
रुद्र ने ठंडी आवाज़ में कहा।
“यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है।”
आर्या धीरे से बोली,
“अगर मैं यहाँ रह रही हूँ, तो जानने का हक भी तो है…
कि मेरे आसपास कौन लोग हैं, क्या चल रहा है।”
रुद्र ने एक पल उसे देखा, फिर हल्की मुस्कान दी —
“जानने की चाह… ज़हर की तरह होती है, आर्या।
धीरे-धीरे आदमी को अंदर से खत्म कर देती है।”
फिर भी उसने कहा,
“ठीक है, आज तू देख लेगी… वो दुनिया जो तू समझ नहीं पाएगी।”
कुछ देर बाद दोनों एक काली SUV में बैठे।
गाड़ी शहर के भीड़भाड़ वाले रास्तों को छोड़कर एक सुनसान इलाके में जा रही थी।
आर्या की आँखों के सामने सब कुछ धुंधला था —
बाहर की दुनिया जैसे धीरे-धीरे अंधेरे में डूब रही थी।
आख़िरकार गाड़ी एक पुराने फैक्ट्री के सामने रुकी।
अंदर दर्जनों आदमी बंदूकें थामे खड़े थे।
कमरे के बीचोंबीच एक मेज़ पर नक्शा फैला हुआ था,
और उस पर खून के कुछ छींटे सूख चुके थे।
रुद्र अंदर गया,
सारे लोग खड़े हो गए — “बॉस…”
उसने हाथ उठाकर सबको बैठने का इशारा किया।
“आर्यन की मौत का बदला अब वक्त माँग रहा है,”
रुद्र ने कहा, “उसके पीछे जो गैंग था, उसका नाम है तारीक खान सिंडिकेट।”
एक आदमी बोला, “बॉस, वो बॉर्डर के पार है… पहुँच मुश्किल है।”
रुद्र ने सिगरेट जलाई —
धुएँ के बीच उसकी आवाज़ और भारी हो गई,
“जहाँ रुद्र की नज़र पहुँच जाए, वहाँ कोई पार नहीं रहता।”
आर्या दरवाज़े के पास खड़ी सब देख रही थी।
ये वो दुनिया थी जहाँ इंसान नहीं, आदेश चलते थे।
जहाँ मौत भी सिर्फ़ एक काम का हिस्सा थी।
उसे लगा, उसके भाई की मौत के पीछे जो अंधेरा था,
वो अब उसी के आसपास सिमटने लगा है।
बैठक खत्म हुई।
सारे आदमी चले गए।
आर्या धीरे से बोली,
“आपकी ये दुनिया… क्या हमेशा ऐसी ही रही है?”
रुद्र ने बिना देखे जवाब दिया,
“ये दुनिया मुझे नहीं मिली, आर्या… मैंने बनाई है।
और इसमें दया की कोई जगह नहीं।”
“पर आपमें है,”
आर्या की आवाज़ बहुत धीमी थी,
“अगर न होती, तो आप मेरे भाई का वादा नहीं निभाते।”
रुद्र उसकी तरफ मुड़ा —
पहली बार उसकी आँखों में एक पल के लिए वो सख़्ती नहीं थी।
वो कुछ कहना चाहता था,
पर तभी उसका फ़ोन बजा।
उसने कॉल उठाया,
और अगले ही सेकंड उसका चेहरा बदल गया।
“क्या?”
उसकी आवाज़ में ग़ुस्सा और हैरानी थी।
“आर्या को निशाना बनाया गया है,”
कॉलर की घबराई आवाज़ आई।
“किसी ने उसकी तस्वीरें लीक की हैं… और पता चल गया है कि वो रुद्र रावत की बीवी है।”
रुद्र ने फ़ोन फेंका और ग़ुस्से में ज़मीन पर पैर मारा।
“किसने हिम्मत की…”
आर्या डरकर पीछे हटी।
“क्या हुआ?”
रुद्र उसके पास आया —
“अब तुझे सिर्फ़ मेरी दुनिया नहीं देखनी पड़ेगी, आर्या…
अब तू उसका हिस्सा बन चुकी है।”
उसी रात हवेली की सुरक्षा दोगुनी कर दी गई।
हर कोने में गार्ड्स, कैमरे, और चुप्पी।
आर्या अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रही थी —
जहाँ हर दीवार अब किसी कैद का हिस्सा लग रही थी।
तभी दरवाज़ा धीरे से खुला।
रुद्र अंदर आया।
उसके हाथ में वही लॉकेट था जो उसने उसे दिया था।
वो चुपचाप उसके पास आया और बोला,
“डर मत। जब तक मैं ज़िंदा हूँ, तुझे कोई छू भी नहीं सकता।”
आर्या ने पहली बार उसकी आँखों में देखा।
वहाँ अब न डर था, न नफरत — बस एक अजीब-सी ताक़त।
वो कुछ पल तक उसे देखती रही, फिर धीमे से बोली,
“अगर मैं आपकी दुनिया का हिस्सा बन ही चुकी हूँ…
तो मुझे भी अपनी तरह मज़बूत बनाइए, रुद्र।”
रुद्र ने गहरी नज़र से उसकी ओर देखा,
जैसे किसी चिंगारी ने पत्थर को छुआ हो।
“तू नहीं जानती आर्या,”
उसने धीमे से कहा,
“माफ़िया की दुनिया में जो मज़बूत होते हैं… वो फिर मासूम नहीं रहते।”
आर्या ने हल्की मुस्कान दी,
“तो शायद अब वो मासूमियत मुझमें बाकी नहीं रही।”
कमरे में सन्नाटा फैल गया —
पर उस सन्नाटे में पहली बार एक नई कहानी की धड़कन सुनाई दी।
जहाँ डर धीरे-धीरे आकर्षण में बदल रहा था,
और वादा… एक अनकही मोहब्बत में।
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