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Indian Death Note

death note chapter 1

Indian Death Note – Chapter 1: Shuruat Ek Rahasya Ki

गहरी रात थी। पूरा गाँव नींद के आगोश में था, लेकिन एक जगह अब भी हलचल थी—कबीर का गैरेज। पीली टिमटिमाती हुई लाइट के नीचे, कबीर एक पुरानी बुलेट मोटरसाइकिल की मरम्मत कर रहा था। उसके हाथों में ग्रीस लगा हुआ था, और रेडियो पर कोई धीमा फिल्मी गाना बज रहा था।

तभी उसकी नज़र वर्कबेंच पर पड़ी एक अजीब-सी काली किताब पर गई। यह किताब धूल से ढकी हुई थी, और इसके कवर पर सुनहरे अक्षरों में कुछ लिखा था—"DEATH NOTE"।

"ये यहाँ कैसे आई?" कबीर ने खुद से सवाल किया। उसने किताब को उठाया और उसका पहला पन्ना पलटा।

"इस किताब में जिसका भी नाम लिखा जाएगा, उसकी मौत निश्चित है।"

कबीर हँसा, "क्या बकवास है! कोई हॉरर स्टोरी होगी।"

उसने किताब को किनारे रख दिया और दोबारा अपने काम में लग गया। लेकिन मन के किसी कोने में एक अजीब-सा शक घर कर गया। वह फिर से किताब की ओर देखने लगा।

"क्यों न इसे आज़मा कर देखा जाए?" उसने मज़ाकिया लहज़े में सोचा।

वह अपने गाँव के सबसे बदनाम आदमी रघु ठाकुर का नाम किताब में लिखने लगा। रघु एक शराबी था, जिसने गाँव के कई लोगों को सताया था। कबीर ने मज़े-मज़े में नाम लिखा और किताब बंद कर दी।

कुछ समय बाद, गैरेज के बाहर शोर मचने लगा। कबीर बाहर निकला तो देखा कि गाँव के लोग किसी की लाश के चारों ओर खड़े थे। कोई चिल्ला रहा था, "रघु मर गया! उसे हार्ट अटैक आ गया!"

कबीर के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। "ये... ये कैसे हो सकता है? मैंने अभी-अभी उसका नाम लिखा था!"

वह घबराकर गैरेज में लौटा और किताब को दोबारा खोला। अंदर एक और नियम लिखा था:

"अगर नाम लिखने के 40 सेकंड के अंदर मौत का कारण नहीं लिखा गया, तो व्यक्ति की मौत हार्ट अटैक से होगी।"

कबीर की साँसें तेज़ हो गईं। "क्या मेरे पास सच में मौत को काबू करने की ताकत है?"

उसी समय, गैरेज के कोने में एक परछाईं हिलने लगी। कबीर ने मुड़कर देखा तो एक रहस्यमयी आकृति धीरे-धीरे सामने आ रही थी—लंबा कद, लाल चमकती आँखें, और अजीब-सी काली पोशाक।

"तुमने डेथ नोट इस्तेमाल किया है, कबीर," वह डरावनी आवाज़ में बोला।

कबीर का पूरा शरीर कांपने लगा। "त...तुम कौन हो?"

"मेरा नाम यमराज है। मैं इस किताब का रखवाला हूँ। और अब से, तुम इस खेल का हिस्सा बन चुके हो..." वह हँसा, और उसकी हँसी कबीर के दिल में अजीब-सा डर बैठा गई।

कबीर समझ नहीं पा रहा था कि यह एक श्राप है या कोई वरदान। लेकिन इतना ज़रूर था कि अब उसकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदलने वाली थी...

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(क्या कबीर इस किताब की ताकत को सही तरीके से इस्तेमाल कर पाएगा? क्या वह इस शक्ति से डरकर भागेगा या इसका उपयोग करेगा? जानने के लिए अगले अध्याय का इंतज़ार करें!) Indian Death Note – Chapter 1: Shuruat Ek Rahasya Ki

गहरी रात थी। पूरा गाँव नींद के आगोश में था, लेकिन एक जगह अब भी हलचल थी—कबीर का गैरेज। पीली टिमटिमाती हुई लाइट के नीचे, कबीर एक पुरानी बुलेट मोटरसाइकिल की मरम्मत कर रहा था। उसके हाथों में ग्रीस लगा हुआ था, और रेडियो पर कोई धीमा फिल्मी गाना बज रहा था।

तभी उसकी नज़र वर्कबेंच पर पड़ी एक अजीब-सी काली किताब पर गई। यह किताब धूल से ढकी हुई थी, और इसके कवर पर सुनहरे अक्षरों में कुछ लिखा था—"DEATH NOTE"।

"ये यहाँ कैसे आई?" कबीर ने खुद से सवाल किया। उसने किताब को उठाया और उसका पहला पन्ना पलटा।

"इस किताब में जिसका भी नाम लिखा जाएगा, उसकी मौत निश्चित है।"

कबीर हँसा, "क्या बकवास है! कोई हॉरर स्टोरी होगी।"

उसने किताब को किनारे रख दिया और दोबारा अपने काम में लग गया। लेकिन मन के किसी कोने में एक अजीब-सा शक घर कर गया। वह फिर से किताब की ओर देखने लगा।

"क्यों न इसे आज़मा कर देखा जाए?" उसने मज़ाकिया लहज़े में सोचा।

वह अपने गाँव के सबसे बदनाम आदमी रघु ठाकुर का नाम किताब में लिखने लगा। रघु एक शराबी था, जिसने गाँव के कई लोगों को सताया था। कबीर ने मज़े-मज़े में नाम लिखा और किताब बंद कर दी।

कुछ समय बाद, गैरेज के बाहर शोर मचने लगा। कबीर बाहर निकला तो देखा कि गाँव के लोग किसी की लाश के चारों ओर खड़े थे। कोई चिल्ला रहा था, "रघु मर गया! उसे हार्ट अटैक आ गया!"

कबीर के हाथ-पैर ठंडे पड़ गए। "ये... ये कैसे हो सकता है? मैंने अभी-अभी उसका नाम लिखा था!"

वह घबराकर गैरेज में लौटा और किताब को दोबारा खोला। अंदर एक और नियम लिखा था:

"अगर नाम लिखने के 40 सेकंड के अंदर मौत का कारण नहीं लिखा गया, तो व्यक्ति की मौत हार्ट अटैक से होगी।"

कबीर की साँसें तेज़ हो गईं। "क्या मेरे पास सच में मौत को काबू करने की ताकत है?"

उसी समय, गैरेज के कोने में एक परछाईं हिलने लगी। कबीर ने मुड़कर देखा तो एक रहस्यमयी आकृति धीरे-धीरे सामने आ रही थी—लंबा कद, लाल चमकती आँखें, और अजीब-सी काली पोशाक।

"तुमने डेथ नोट इस्तेमाल किया है, कबीर," वह डरावनी आवाज़ में बोला।

कबीर का पूरा शरीर कांपने लगा। "त...तुम कौन हो?"

"मेरा नाम यमराज है। मैं इस किताब का रखवाला हूँ। और अब से, तुम इस खेल का हिस्सा बन चुके हो..." वह हँसा, और उसकी हँसी कबीर के दिल में अजीब-सा डर बैठा गई।

कबीर समझ नहीं पा रहा था कि यह एक श्राप है या कोई वरदान। लेकिन इतना ज़रूर था कि अब उसकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदलने वाली थी...

(क्या कबीर इस किताब की ताकत को सही तरीके से इस्तेमाल कर पाएगा? क्या वह इस शक्ति से डरकर भागेगा या इसका उपयोग करेगा? जानने के लिए अगले अध्याय का इंतज़ार करें!)

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